मुंबई। अजवायन की इस साल बारिश से क्वॉलिटी डैमेज होने से भाव पिछले सीजन की तुलना में काफी तेज है लेकिन ग्रीष्मकालीन अजवायन का उत्पादन बेहतर होने पर इसके भाव 20-25 फीसदी तक गिरने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
कारोबारियों का कहना है कि देश में इस साल खरीफ अजवायन की उपज काफी कम रही जिसकी वजह से इसके भाव रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गए हैं एवं यह तेजी अगले दो महीने तक बनी रहने की संभावना है। ग्रीष्मकालीन अजवायन की उपज बेहतर आती है तो इसके बढ़ते भावों पर लगाम लग सकती है। लेकिन, कुल मिलाकर बैलेंसशीट टाइट होने से अजवायन के लिए यह वर्ष मजबूती का वर्ष रहेगा। सीजन की शुरुआत से अब तक बेस्ट ग्रीन अजवायन 2500-3000 रुपए प्रति क्विंटल और एवरेज-रेगुलर क्वॉलिटी अजवायन के भाव 1500-2000 रुपए प्रति क्विंटल तक बढ़े हैं।
कारोबारी अनुमान के मुताबिक देश में खरीफ सीजन में अजवायन की उपज सौराष्ट्र में 50-55 हजार बोरी (प्रति बोरी 60 किलोग्राम), नंदूरबार-विदर्भ-औरंगाबाद में 15 हजार बोरी, राजस्थान-मध्य प्रदेश 80-90 हजार बोरी, कर्नूल, विकाराबाद-अडोनी में 1-1.25 लाख बोरी होने का अनुमान है। इस तरह, कुल उत्पादन 3.75-4 लाख बोरी होने का अनुमान है जो पिछले सीजन की तुलना में काफी कम है। इस साल, अजवायन का पुराना स्टॉक तकरीबन एक लाख बोरी है। इस तरह कुल उपलब्धता पांच लाख बोरी के करीब है जबकि इसकी मांग सात से आठ लाख बोरी रहती है। कारोबारियों का कहना है कि अब नजर ग्रीष्मकालीन अजवायन के उत्पादन पर रहेगी। मौजूदा स्थिति को देखते हुए एक वर्ग यह मानता है कि यह उत्पादन 4-4.50 लाख बोरी रहेगा जबकि कुछ कारोबारी कहते हैं यह उत्पादन तीन लाख बोरी रह सकता है। ग्रीष्मकालीन अजवायन की आवक मार्च-अप्रैल में होगी एवं इस आवक पर भाव गिरने की उम्मीद है। उपज उम्मीद से कम आने एवं कोरोना काल में इसकी मांग बढ़ने से यह बढ़त आई है।
इम्युनिटी बढ़ाने में सहायक होने की वजह से अजवयान की घरेलू एवं निर्यात मांग अच्छी है। भारतीय अजवायन का निर्यात मुख्य रुप से सऊदी अरब एवं मध्य पूर्व देशों में होता है। अब इसका निर्यात यूरोपीयन देशों को भी होने लगा है। देश से अप्रैल से नवंबर 2020 के दौरान 1766.05 टन अजवायन का निर्यात हुआ जो वर्ष 2019 की समान अवधि में 958.47 टन था। इस तरह निर्यात में 84.26 प्रतिशत का इजाफा हुआ। कारोबारियों का कहना है कि अजवायन का निर्यात इस साल भाव ऊंचे होने की वजह से कुछ घट सकता है।
बता दें कि कृषि मंत्रालय के बागवानी विभाग द्वारा जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक वर्ष 2019-20 में अजवायन का उत्पादन 28 हजार टन आंका गया है जबकि इसकी खेती तीसरे 38 हजार हैक्टेयर में हुई। वर्ष 2018-19 में अजवायन का उत्पादन 22 हजार टन आंका गया जबकि, इसका रकबा 35 हजार हैक्टेयर था। बागवानी विभाग ने वर्ष 2020-21 के लिए अपना पहला अग्रिम अनुमान अभी जारी नहीं किया है।
गुजरात की जामनगर मंडी में एवरेज ग्रीन अजवायन 17500-19000 रूपए, रेगुलर ग्रीन अजवायन 20000-22500 रुपए, बेस्ट ग्रीन अजवायन 22500-27500 रुपए प्रति क्विंटल बिक रही है।
(मोलतोल ब्यूरो; +91-75974 64665)
नई दिल्ली। देश से वित्त वर्ष 2020-21 के पहले आठ महीनों अप्रैल-नवंबर के दौरान लाल मिर्च का निर्यात वित्त वर्ष 2019-20 की समान अवधि की तुलना में 15.31 फीसदी बढ़ा है। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 (अप्रैल-मार्च) के पहले आठ महीनों में भारत का लाल मिर्च निर्यात 289670.88 टन पहुंच गया। यह निर्यात वर्ष 2019-20 की समान अवधि में 251211.56 टन था। ये निर्यात आंकडे साबुत लाल मिर्च के हैं। नवंबर 2020 में यह निर्यात 30034.10 टन पहुंच गया जो नवंबर 2019 में 18836.80 टन था। यानी नवंबर में निर्यात 59.44 फीसदी बढ़ा।
देश से नवंबर महीने में चीन को लाल मिर्च का निर्यात 468.21 फीसदी उछलकर 2223.95 टन से 12636.78 टन पहुंच गया। लाल मिर्च का निर्यात नवंबर 2020 में बांग्लादेश को 3654.91 टन हुआ जो नवंबर 2019 में 2857 टन था। इस तरह इसमें 27.93 फीसदी का इजाफा हुआ। इंडोनेशिया को यह निर्यात 28.99 फीसदी गिरकर 2875.38 टन से 2041.90 टन रह गया। भारत का लाल मिर्च निर्यात मलेशिया को 29.93 फीसदी बढ़कर 1303.36 टन की तुलना में 1693.46 टन, श्रीलंका को 40.22 फीसदी घटकर 4847.49 टन की तुलना में 2897.91 टन रहा।
भारत का लाल मिर्च निर्यात थाईलैंड को नवंबर 2020 में 3.61 फीसदी गिरा एवं 2488.38 टन से 2398.45 टन रहा जबकि, अमरीका को 66.10 फीसदी घटकर 937.62 टन की तुलना में 317.85 टन रहा। यह निर्यात वियतनाम को 28.15 फीसदी बढ़कर 402.12 टन के बजाय 515.33 टन और संयुक्त अरब अमीरात को 1053.52 फीसदी उछलकर 154.54 टन से 1782.66 टन पहुंच गया। नेपाल को यह निर्यात 35.08 टन से 240.58 टन, म्यांमार को 166 टन से 500.54 टन पहुंच गया।
कैलेंडर वर्ष 2020 की बात की जाए तो जनवरी से नवंबर 2020 के दौरान देश से लाल मिर्च निर्यात 397295.77 टन हुआ जो जनवरी से नवंबर 2019 के दौरान 361775.37 टन था। इस तरह कैलेंडर वर्ष 2020 के पहले 11 दस महीनों में लाल मिर्च का निर्यात कैलेंडर वर्ष 2019 की समान तिमाही की तुलना में 9.82 फीसदी अधिक रहा।
मुंबई। देश से वित्त वर्ष 2020-21 में अप्रैल से नवंबर के दौरान धनिया का निर्यात वित्त वर्ष 2019-20 की समान अवधि की तुलना में 18.68 फीसदी बढ़ा। वित्त वर्ष 2020-21 के पहले आठ महीनों में यह निर्यात 29939.17 टन रहा जो वित्त वर्ष 2019-20 के समान समय में 25226.94 टन था। अकेले नवंबर 2020 की बात की जाए तो यह निर्यात 43.39 फीसदी बढ़कर 3950.73 टन पहुंच गया जो नवंबर 2019 में 2755.16 टन था।
विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के मुताबिक नवंबर 2020 में भारत से मलेशिया को धनिया का निर्यात 705.03 टन रहा जो नवंबर 2019 में 712.53 टन था। संयुक्त अरब अमीरात को यह निर्यात 56.80 फीसदी गिरकर 555 टन की तुलना में 239.75 टन रहा। सऊदी अरब को यह निर्यात 5.96 फीसदी फिसलकर 257.73 टन से 242.36 टन आ गया। भारत का धनिया निर्यात नेपाल को 44.88 फीसदी उछलकर 290.92 टन की तुलना में 421.48 टन, ओमान को 74.77 फीसदी घटकर 90.10 टन की तुलना में 22.73 टन रह गया। इसी तरह, धनिया निर्यात नवंबर 2020 में बहरीन को 3.70 टन की तुलना में 1.11 टन, चीन को धनिया 21 टन की तुलना में 435 टन पहुंच गया। कुवैत को 70.61 फीसदी बढ़कर 25.08 टन की तुलना में 42.79 टन पहुंच गया।
कैलेंडर वर्ष 2020 की बात की जाए तो जनवरी से नवंबर 2020 के दौरान देश से धनिया निर्यात 38169.24 टन हुआ जो जनवरी से नवंबर 2019 के दौरान 34259.27 टन था। इस तरह कैलेंडर वर्ष 2020 के पहले 11 महीनों में धनिया का निर्यात कैलेंडर वर्ष 2019 की समान अवधि की तुलना में 11.41 फीसदी बढ़ा।
मुंबई। देश से वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान अप्रैल-नवंबर में हल्दी का निर्यात वित्त वर्ष 2019-20 के समान समय की तुलना में 49.60 फीसदी बढ़कर 130913.56 टन पहुंच गया। यह निर्यात वित्त वर्ष 2019-20 की समान अवधि में 87510.29 टन रहा। नवंबर 2020 की बात की जाए तो हल्दी का निर्यात 13862.20 टन पहुंच गया जो नवंबर 2019 में 11687.82 टन था। इस तरह, इसमें 18.60 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के मुताबिक नवंबर 2020 में भारत का हल्दी निर्यात बांग्लादेश को 2439.10 टन हुआ जो नवंबर 2019 में 2405.40 टन से 1.40 फीसदी ज्यादा है। ईरान को यह निर्यात 66.06 फीसदी बढ़कर 773.80 टन की तुलना में 1285 टन पहुंच गया। संयुक्त अरब अमीरात को यह निर्यात 63.59 फीसदी चढ़कर 978.98 टन से 1601.49 टन पहुंच गया। इजिप्त को हल्दी का निर्यात 96 टन की तुलना में 270 फीसदी बढ़कर 355.20 टन पहुंच गया।
मलेशिया को 448.78 टन की तुलना में 447 टन, दक्षिण अफ्रीका को 268.38 टन की तुलना में 298.68 टन, अमरीका को 733.99 टन के मुकाबले 973.99 टन हल्दी का निर्यात हुआ। जर्मनी को हल्दी का निर्यात 264.12 टन की तुलना में 351.07 टन, इराक को यह निर्यात 368 टन की तुलना में 164 टन, इंडोनेशिया को 101.08 टन की तुलना में 132 टन पहुंच गया। भारत का जापान को हल्दी निर्यात 36.39 फीसदी बढ़कर 289.06 टन की तुलना में 394.26 टन, श्रीलंका को 98.80 फीसदी फिसलकर 490.08 टन के बजाय 5.90 टन, टयूनिशिया को 373.50 टन के मुकाबले 239.50 टन निर्यात रहा।
कैलेंडर वर्ष 2020 की बात की जाए तो जनवरी से नवंबर 2020 के दौरान देश से हल्दी निर्यात 165884.15 टन हुआ जो जनवरी से नवंबर 2019 के दौरान 118856.35 टन था। इस तरह कैलेंडर वर्ष 2020 की पहले 11 महीनों में हल्दी का निर्यात कैलेंडर वर्ष 2019 की समान अवधि की तुलना में 39.57 फीसदी बढ़ा।
नई दिल्ली। देश से वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान अप्रैल से नवंबर तक जीरा का निर्यात 195134.83 टन पहुंच गया जो वित्त वर्ष 2019-20 की समान अवधि में 145448.64 टन था। इस तरह जीरा निर्यात में 34.16 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के मुताबिक यह निर्यात नवंबर 2020 में 74.61 फीसदी बढ़कर 19220.10 टन पहुंच गया जो नवंबर 2019 में 11007.15 टन था।
डीजीएफटी के मुताबिक चीन को जीरा निर्यात नवंबर 2020 में 8977 टन पहुंच गया जो नवंबर 2019 में 1295.50 टन था। इस तरह निर्यात में 592.94 फीसदी का उछाल आया। जबकि, वियतनाम को यह निर्यात 5.05 टन की तुलना में 154.97 टन पहुंच गया। बांग्लादेश को 2166.02 टन की तुलना में 2382.71 टन, अमरीका को जीरा निर्यात 38.91 फीसदी बढ़कर 635.77 टन से 883.12 टन, इजिप्त को 19.40 फीसदी गिरकर 531 टन की तुलना में 428 टन पहुंच रहा।
संयुक्त अरब अमीरात को जीरा निर्यात 490.26 टन की तुलना में 35.18 फीसदी गिरकर 317.77 टन, नेपाल को 530.83 टन के बजाय 655.23 टन, पेरु को 158 टन की तुलना में 182 टन, पोलैंड को 28 टन के मुकाबले 81 टन, दक्षिण अफ्रीका को 53.31 टन की तुलना में 122.16 टन, टर्की को जीरा निर्यात 110.02 फीसदी बढ़कर 50 टन की तुलना में 105.01 टन जीरा निर्यात हुआ।
कैलेंडर वर्ष 2020 की पहले 11 महीनों की बात की जाए तो देश से कुल जीरा निर्यात (जनवरी से नवंबर) के दौरान 237777.89 टन पहुंच गया जो जनवरी से नवंबर 2019 के दौरान 188428.43 टन था। इस तरह कैलेंडर वर्ष 2020 के पहले 11 महीनों में जीरा निर्यात 25.19 फीसदी अधिक हुआ।
मुंबई। हल्दी एनसीडीईएक्स वायदा ने दिसंबर 2020 में 5712 रुपए का निचला स्तर छूआ एवं उसी लेवल से यह सुधरा है। हल्दी वायदा कल बुधवार को 6350 रुपए की ऊंचाई को अगस्त 2020 के बाद पहली बार छू गया।
पृथ्वी फिनमार्ट, मुंबई के कमोडिटी हैड डाइरेक्टर मनोज कुमार जैन का कहना है कि साप्ताहिक चार्ट के आधार पर हल्दी वायदा ने डबल बॉटम पैटर्न बनाया है एवं 6380 रुपए का लेवल पार करने के बाद इसमें और मजबूती दिखाई देगी। इस लेवल के पार करने पर यह 6520-6600 रुपए का लेवल छू सकता है। हल्दी वायदा को सपोर्ट 6200-6120 रुपए पर है।
ऊंझा/जयपुर। अमरीकी कंपनी प्रोक्टर एंड गेम्बल ने नई ईसबगोल भूसी के नए सौदे जो किए हैं, वे काफी निचले भाव पर होने से ईसबगोल के दाम फिसल गए हैं। दूसरी ओर, राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में ईसबगोल की फसल बेहतर स्थिति में होने से इसका उत्पादन 27-28 लाख बोरी (प्रति बोरी 75 किलोग्राम) आंका जा रहा है जिसका बाजार पर दबाव महसूस किया जा रहा है क्योंकि हमारी सालाना निर्यात-घरेलू मांग 22 लाख बोरी के करीब ही है।
निर्यातकों के मुताबिक अमरीकी कंपनी प्रोक्टर एंड गेम्बल ने 150 लॉट नई ईसबगोल भूसी खरीदने का करार किया है। ये सौदे 4.70-4.80 अमरीकी डॉलर प्रति किलोग्राम पर हुए हैं। भारतीय रुपए में इसे कनवर्ट करने पर यह भाव तकरीबन 350 रुपए प्रति किलोग्राम बैठता है। यानी नए सौदे काफी कम भाव पर हुए हैं एवं इसका शीपमेंट अप्रैल से जून के दौरान हर महीने 50-50 लॉट में होता रहेगा। जबकि, वर्तमान में ईसबगोल भूसी 435 रुपए प्रति किलोग्राम ऑफर हो रही है। कारोबारियों के मुताबिक, जनवरी महीने में देश से तकरीबन 200 कंटेनर का शीपमेंट होने की संभावना है।
ईसबगोल भूसी (Psyllium husk) 95 वैरायटी अब 435 रुपए प्रति किलोग्राम ऑफर हो रही है। जबकि, ईसबगोल का दाम घटकर 113-114 रुपए प्रति किलोग्राम आ गया है। ईसबगोल गोला 1500 रुपए प्रति क्विंटल है। दूसरी ओर, मांग निकलने से कलर वाली ईसबगोल भूसी 98 का भाव 500 रुपए, 99 का भाव 580-590 रुपए और 96 का दाम 470-480 रुपए प्रति किलोग्राम ऑफर हो रही है।
ईसबगोल किसानों और कारोबारियों का कहना है कि गुजरात, राजस्थान एवं मध्य प्रदेश में मौसम अनुकूल होने से इस साल उत्पादन बढ़ सकता है। आरंभिक अनुमान के मुताबिक ईसबगोल का उत्पादन 27-28 लाख बोरी (प्रति बोरी 75 किलोग्राम) आंका जा रहा है। हालांकि, ईसबगोल के लिए 15 फरवरी से 10 मार्च तक का मौसम अहम रहेगा। यदि इस दौरान बारिश होती है या मौसम बिगड़ता है तो ईसबगोल के उत्पादन पर विपरीत असर देखने को मिल सकता है। बता दें कि ईसबगोल के पकने के समय यदि बारिश होती है तो यह फसल को चौपट कर देती है।
गुजरात कृषि विभाग के मुताबिक राज्य में ईसबगोल की बोआई 18 जनवरी 2021 तक राज्य में ईसबगोल की बोआई 9491 हैक्टेयर की तुलना में 12453 हैक्टेयर में हुई है। मध्य प्रदेश सरकार द्धारा अभी पूरे आंकडे न जुटा पाने की वजह से ईसबगोल की बोआई के आंकडे जारी नहीं किए गए हैं। राज्य में पिछले साल 14806 हैक्टेयर में ईसबगोल की बोआई हुई थी। राजस्थान कृषि विभाग के मुताबिक राज्य में 5 जनवरी 2020 तक राज्य में ईसबगोल की बोआई 332900 हैक्टेयर में हुई है। बीते रबी फसल सीजन में 3 जनवरी 2020 तक राज्य में ईसबगोल की बोआई 329100 हैक्टेयर में हुई थी।
मुंबई। जीरे की उपज नए रबी सीजन में बेहतर होगी एवं निर्यात भी चालू मार्केटिंग वर्ष जैसा ही रह सकता है लेकिन कंटेनर की शार्टेज एवं पेस्टीसाइडस की भरमार भारतीय जीरे के प्राइस को कमजोर बना सकती है। यह कहना है कि जैब्स इंटरनेशनल प्रा. लि. मुंबई के निदेशक शैलेष शाह का।
शाह ने मोलतोल से बातचीत में बताया कि जीरे की राजस्थान एवं गुजरात में बोआई अच्छी हुई है एवं मौसम फसल के काफी अनुकूल है। दोनों राज्यों से अभी तक जीरे की फसल को किसी तरह का नुकसान होने का समाचार नहीं है। यदि ऐसा ही रहा तो नए रबी सीजन में देश में तकरीबन 4-4.50 लाख टन की उपज होने की संभावना है। देश से जीरे के निर्यात की बात की जाए तो यह आम तौर पर 1.80-2 लाख टन रहता है एवं नए मार्केटिंग वर्ष में भी इतना जीरा आसानी से निर्यात हो जाएगा। लेकिन, हमारे यहां ट्रेड में कुछ कमियां है जिसकी वजह से भारतीय जीरे के भाव अंतरराष्ट्रीय बाजार में वे नहीं मिल पाते, जिसके हम हकदार हैं।
शाह का कहना है कि हमारे यहां अभी जीरे की नई फसल आई नहीं है, लेकिन उससे पहले ही निर्यातकों एवं कारोबारियों ने जमकर शोर मचा दिया है कि देश में जीरे की फसल बम्पर आ रही है। जबकि, अभी मौसम बदल सकता है, यील्ड में परिवर्तन हो सकता है जिसका सीधा असर उपज पर पड़ता है। लेकिन हमारे यहां जिस तरह बम्पर फसल का शोर हो रहा है उससे खरीददार पीछे हट जाता है या वह अपनी खरीद धीमी कर देता है। कभी भी यह नहीं जताना चाहिए कि हमारे यहां फसल कितनी है एवं खरीददार से अच्छे प्राइस ही वसूल करने चाहिए ताकि इसका किसानों को अधिक से अधिक लाभ हो सके। जब, प्राइस ऊपर रहेंगे तो स्पष्ट है किसानों को उनकी उपज का बेहतर भाव मिल सकेगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय जीरे का भाव अब 2500-2600 डॉलर प्रति टन आ गया है जो काफी कम है। उत्पादन के इस शोर ने भावों को नीचे लाने का काम किया है जबकि मांग में कोई कमी नहीं है।
वे कहते हैं कि फरवरी अंत/मार्च की शुरुआत में सभी फसलें बाजार में होगी जबकि हम निर्यात करने में सक्षम नहीं होंगे क्योंकि कंटेनर की जबरदस्त तंगी है। कंटेनर का भाड़ा काफी बढ़ा है एवं यह भाड़ा चुकाने के बावजूद कंटेनर उपलब्ध नहीं है। ऐसे में यदि कंटेनर की उपलब्धता में सुधार नहीं हुआ तो निर्यातक ऑर्डर नहीं ले पाएंगे क्योंकि उन्हें पता है कि ऑर्डर ले लिया तो शीपमेंट कैसे करूंगा। ऐसे में फसलों के दाम नीचे आना तय है। निर्यात के अभाव में ओवर सप्लाई घरेलू बाजार में भाव घटाने का काम करेगी। वे कहते हैं कि किसानों को भी अब अपनी कार्यशैली बदलनी चाहिए। उन्हें फसल का स्टॉक करना सीखना होगा एवं भाव टूटने की दशा में आक्रामक बिकवाली नहीं करनी चाहिए। यदि वे अपनी उपज का स्टॉक करने की रणनीति सीख गए तो उन्हें उनकी उपज का हमेशा बेहतर प्राइस मिलने की संभावना रहेगी। किसानों को फारमर प्रोडयूसर आर्गेनाइजेशन (एफपीओ) से जुड़ना चाहिए, ये काफी उपयोगी हैं।
शाह का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में जीरे की क्वॉलिटी के पैरामीटर बदल रहे हैं। अब यूरोपीयन देश एवं अमरीका पेस्टीसाइडस नार्मस पर काफी कड़ा रुख अपना चुके हैं। जबकि, हमारे यहां किसान किसी भी पेस्टीसाइडस का उपयोग उपयुक्त मात्रा में नहीं करते, केवल कीट मारना मुख्य उद्देश्य होता है जबकि ये कम से कम एवं कम मात्रा में काम में लेने चाहिए। हम जीरे की बोआई बढ़ा रहे हैं, उत्पादन बढ़ा रहे हैं लेकिन यदि पेस्टीसाइडस से जुड़े मसलों पर ध्यान नहीं दिया तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में खरीददार नहीं होंगे। हमें जो प्राइस विकसित देशों से मिल सकता है, वह अन्य देशों से नहीं मिल सकता।
हमारे निर्यातक इस बात पर खुश होते हैं कि चीन हमसे जीरे की बड़ी खरीद करता जा रहा है लेकिन चीन प्राइस नहीं दे पाता। उसे हमेशा कम भाव चाहिए। वे कहते हैं कि चीन की सालाना खपत 55-60 हजार टन है एवं वह भारत से 35-40 हजार टन जीरा खरीदता है। जबकि, चीन की उपज 12-15 हजार टन है। चीन में जो जीरा पैदा होता है वह एकदम भारतीय जीरा ही है क्योंकि वहां भारतीय जीरे को ही बीज के रुप में काम में लिया जाता है। चीन का भारत से 35-40 हजार टन जीरा खरीदने का पैटर्न खत्म नहीं होगा, लेकिन वहां से हमें वैसे प्राइस नहीं मिल सकते जो अमरीका एवं यूरोप दे सकते हैं।
मुंबई। जीरा मार्च वायदा ने अपने मुख्य सपोर्ट स्तर 13000 रुपए बंद आधार को पिछले सप्ताह बनाए रखा। साप्ताहिक तकनीकी चार्ट के आधार पर देखें तो इसे 13000 रुपए के करीब मजबूत सपोर्ट दिख रहा है। इस लेवल के टूटने पर ही इसमें गिरावट आ सकती है जो 12660-12300 तक इसे ले जा सकता है। अन्यथा यह 13400-13720 की रेंज में कारोबार करेगा।
पृथ्वी फिनमार्ट, मुंबई के कमोडिटी हैड डाइरेक्टर मनोज कुमार जैन का कहना है कि जीरा वायदा में 13000 रुपए का बंद आधार पर स्टॉप लॉस लगाएं एवं यदि यह 13000 रुपए के नीचे आता है तो एक बार लांग पोजीशन से निकल जाएं। जीरा वायदा 13720 के लेवल को टेस्ट करता है तो लांग पोजीशन पर मुनाफा वसूली कर लें। दैनिक बंद आधार पर यह 13000 रुपए के नीचे फिसलता है तो बिकवाली करें।
मुंबई। भारत का काली मिर्च का आयात दिसंबर 2020 में 40.9 फीसदी बढ़कर 2310.3 टन पहुंच गया। वियतनाम में काली मिर्च के दाम काफी नीचे होने से यह खरीद हुई। वियतनाम काली मिर्च 170-195 रुपए प्रति किलोग्राम पर बेच रहा है जबकि भारत में काली मिर्च क्वॉलिटी के मुताबिक 325-350 रुपए प्रति किलोग्राम पर ऑफर हो रही है।
बता दें कि दुनिया में वियतनाम सबसे सस्ती काली मिर्च बेचता है एवं भारतीय कारोबारी इसका आयात कर फिर से 120 दिन में वैल्यू एडिशन के साथ बेचते हैं। फिर से निर्यात करने की वजह से आयातकों को 70 फीसदी आयात शुल्क अदा नहीं करना होता।
भारत ने दिसंबर में वियतनाम, श्रीलंका, ईक्विडोर, मेडागास्कर, पश्चिम एशिया, टर्की ओर इंडोनेशिया से काली मिर्च का आयात किया। कारोबारियों के मुताबिक भारत में दिसंबर में 2310.30 टन काली मिर्च का आयात हुआ लेकिन ग्रे चैनल से भी काफी मात्रा में काली मिर्च भारत आई है। देश में काली मिर्च की तस्करी वर्ष 2019 में काफी बढ़ी जबकि कोरोना के बाद सीमाओं पर सख्ती बरतने से इसमें कमी आई है।
Saturday January 23,2021
मुंबई। अजवायन की इस साल बारिश से क्वॉलिटी डैमेज होने से भाव पिछले सीजन की मुंबई। अजवायन की इस साल बारिश से क्वॉलिटी डैमेज होने से भाव पिछले सीजन की . . . . .
मोलतोल.इन साइट को अपने मोबाइल पर खोलने के लिए आप इस QR कोड को स्कैन कर सकते है..
www.moltol.in © 2016