मुंबई। केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए चार लाख टन उड़द का आयात कोटा जारी किया है। अधिसूचना के अनुसार वित्त वर्ष 2021-22 की अवधि के दौरान मार्च 2022 तक चार लाख टन उड़द का आयात किया जा सकेगा। लेकिन, इस कोटे से उड़द के भावों पर दोहरा दबाव देखने को मिल सकता है क्योंकि इन दिनों आंध्र प्रदेश में नई उड़द की फसल आ रही है जिसमें ग्राहकी सुस्त है एवं मध्य प्रदेश से उड़द गोटा दक्षिण भारत के बाजारों में लगातार सप्लाई हो रहा है। ऐसे में उड़द का फिलहाल आयात होता दिख नही रहा।
कारोबारी अनुमान के मुताबिक आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में नई उड़द की आवक शुरु हो चुकी है एवं वहां फसल 2-2.50 लाख टन आंकी जा रही है। इसके अलावा मध्य प्रदेश के कारोबारी उड़द गोटा की लगातार सप्लाई कर रहे हैं। गर्मी का सीजन शुरु होने से उड़द में मांग कमजोर है। आंध्र प्रदेश की नई उड़द पालिशड का भाव 7450 रुपए प्रति क्विंटल बोला जा रहा है। हालांकि, इस उड़द की क्वॉलिटी थोड़ी कमजोर है। मुंबई में उड़द एफएक्यू 7350 रुपए और पुरानी 7250 रुपए प्रति क्विंटल ऑफर हो रही है। चालू रबी सीजन में उड़द की बोआई 6.54 लाख हैक्टेयर में हुई है जो पिछले साल समान समय में 6.02 हैक्टेयर में थी। चालू रबी सीजन में आंध्र प्रदेश में 2.16 लाख हैक्टेयर की तुलना में 2.37 लाख हैक्टेयर, तमिलनाडु में 2.43 लाख हैक्टेयर की तुलना में 2.50 लाख हैक्टेयर, ओडिशा में 1.12 लाख हैक्टेयर की तुलना में 1.26 लाख हैक्टेयर में उड़द की बोआई हुई है, जबकि अन्य राज्यों में यह छिटपुट है।
दूसरी ओर, म्यांमार में इस साल उड़द की पैदावार चार लाख टन होने की उम्मीद है जबकि पुराना स्टॉक 1-1.50 लाख टन है। इस तरह, म्यांमार में उड़द की कुल उपलब्धता 5-5.50 लाख टन है। बाजार में यह कयास लगाया जा रहा है कि उड़द का कोटा जारी होने से म्यांमार में इसके दाम बढ़ सकते हैं लेकिन यह कोटा मार्च 2022 तक के लिए है, ऐसे में उड़द आयात करने के लिए लंबा वक्त दिया गया है। साथ ही आंध्र प्रदेश की उड़द आयातित उड़द से सस्ती मिल रही है। म्यांमार की उड़द का भाव 8000 रुपए प्रति क्विंटल बोला जा रहा है। घरेलू एवं आयातित उड़द के प्राइस में बड़ा अंतर होने से इसका आयात फिलहाल होना कठिन है। साथ ही म्यांमार में सत्ता पलट से वहां इस महीने 7-8 मार्च तक बंदरगाह एवं बैकिंग गतिविधियां चालू होने के आसार हैं। इस बारे में अभी कुछ स्पष्ट घोषणा नहीं हुई है।
केंद्र सरकार द्धारा जारी अधिसूचना के मुताबिक दौरान उड़द का आयात केवल मिलर्स/रिफाइनर ही कर सकेंगे और केंद्र सरकार मिलों को लाइसेंस के माध्यम से उड़द का आयात कोटा जारी करेगी आवेदन करने वाली मिलों को समान रूप से आयात की मात्रा वितरित की जाएगी।
कृषि मंत्रालय के वर्ष 2020-21 के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक देश में खरीफ सीजन वर्ष 2020-21 में 17.7 लाख टन उड़द उत्पादन का अनुमान लगाया गया है जबकि पहले अग्रिम अनुमान में यह 21.5 लाख टन था। चालू फसल वर्ष में रबी सीजन में उड़द का उत्पादन 68 हजार टन होने का अनुमान है। जबकि, वर्ष 2019-20 में खरीफ सीजन में 13.3 लाख टन एवं रबी सीजन में 7.5 लाख टन उड़द का उत्पादन होने का अनुमान है। यानी कुल उत्पादन 20.8 लाख टन रहा। यह उत्पादन वर्ष 2018-19 में खरीफ सीजन में 23.6 लाख टन एवं रबी में 7 लाख टन कुल 30.6 लाख टन था। देश में फसल वर्ष 2017-18 में कुल 34.9 लाख टन, वर्ष 2016-17 में 28.3 लाख टन उड़द का उत्पादन हुआ।
केंद्र सरकार ने वर्ष 2020-21 में दलहन बफर स्टॉक में चार लाख टन उड़द शामिल करने की घोषणा की है। बता दें कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र मिलकर देश में पैदा होने वाली कुल उड़द में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं। केंद्र सरकार ने चालू सीजन के लिए उड़द का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 6000 रुपए प्रति क्विंटल तय किया है।
(मोलतोल ब्यूरो; +91-75974 64665)
नोखा। राजस्थान की मंडियों में मोठ की आवक एवं उपलब्धता कम होने के बावजूद अब इसके भावों में बड़ी बढ़त की गुंजाइश नहीं है। लेकिन, मूंग के दाम अपने मौजूदा लेवल से बढ़े तो जरुर मोठ के भाव 200-400 रुपए प्रति क्विंटल चढ़ सकते हैं।
कारोबारियों के मुताबिक मोठ के दाम इस समय मूंग से ऊपर चल रहे हैं जबकि यह हमेशा मूंग के पीछे चलता है। बढि़या मूंग का भाव 7000 रुपए और हल्के मूंग का दाम 6600 रुपए प्रति क्विंटल बोला जा रहा है जबकि मोठ 7000 रुपए प्रति क्विंटल पहुंच गया है। मोठ में आई इस बढ़त की वजह होली पर नमकीन बनाने वालों की मांग एवं इसकी कमजोर आवक है। राजस्थान की मुख्य मोठ मंडी नोखा में इन दिनों मोठ की दैनिक आवक एक हजार बोरी एवं पूरे राज्य में तीन हजार बोरी है। जबकि, कारोबारी अनुमान के मुताबिक नोखा में मोठ का स्टॉक 2-2.50 लाख बोरी है जबकि पूरे राज्य में यह स्टॉक 7-8 लाख बोरी के करीब है। बता दें मोठ की बोआई खरीफ सीजन में होती है, जबकि नई फसल की आवक सितंबर में होती है।
कारोबारियों का कहना है कि पिछले सीजन में भी मोठ ऊपर में 7000 रुपए प्रति क्विंटल बिका था जबकि इस बार कम उपलब्धता के साथ आने वाले दिनों में मूंग के भाव बढ़ते हैं तो मोठ 8000 रुपए प्रति क्विंटल के लेवल को भी छू सकता है लेकिन अभी ऐसी कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि बढ़ती महंगाई की वजह से सरकार की आने वाले दिनों में दलहन नीति पर सब कुछ निर्भर होगा।
सीजन की शुरुआत में कारोबारी अनुमान के मुताबिक राजस्थान में 35-40 लाख बोरी एवं गुजरात में पांच से छह लाख बोरी (प्रति बोरी 100 किलोग्राम) मोठ का उत्पादन रहने का आंकलन था। दूसरी ओर, सरकारी अनुमान के मुताबिक राजस्थान में खरीफ फसल वर्ष 2020-21 में मोठ का उत्पादन 534497 टन रहने की संभावना है। इसकी खेती 869100 हैक्टेयर में हुई जबकि प्रति हैक्टेयर यील्ड 685 किलोग्राम रहने का अनुमान है। गुजरात में इस साल 14460 हैक्टेयर में मोठ की बोआई हुई है और उत्पादन 8290 टन रहने का अनुमान है। राज्य में प्रति हैक्टेयर मोठ की उपज 573.41 किलोग्राम रहने का अनुमान है।
राजस्थान में फसल वर्ष 2019-20 में मोठ की बोआई 953775 हैक्टेयर में हुई और उत्पादन 313830 टन रहा। प्रति हैक्टेयर यील्ड 329 किलोग्राम रही। जबकि, फसल वर्ष 2018-19 में मोठ की बोआई 978176 हैक्टेयर में हुई और उत्पादन 222584 टन रहा। प्रति हैक्टेयर यील्ड 228 किलोग्राम रही। खरीफ फसल वर्ष 2017-18 में यह बोआई 1043484 हैक्टेयर में थी एवं उत्पादन 323338 टन रहा जबकि प्रति हैक्टेयर यील्ड 310 किलोग्राम थी।
गुजरात में मोठ उत्पादन की बात की जाए तो फसल वर्ष 2019-20 में मोठ की बोआई 11560 हैक्टेयर में हुई और उत्पादन 5330 टन रहा। प्रति हैक्टेयर यील्ड 461.54 किलोग्राम रहा। जबकि, फसल वर्ष 2018-19 में मोठ की बोआई 12130 हैक्टेयर में हुई और उत्पादन केवल 990 टन रहा। प्रति हैक्टेयर यील्ड 82 किलोग्राम रही। फसल वर्ष 2017-18 में मोठ की बोआई 27250 हैक्टेयर में हुई और उत्पादन 17764 टन रहा। प्रति हैक्टेयर यील्ड 651.89 किलोग्राम थी।
वर्तमान में देश की सबसे बड़ी मंडी नोखा में मोठ 7000 रुपए प्रति क्विंटल बिक रहा है। जबकि, मोठ मोगर खडा 10000 रुपए और गोल 9300 रुपए प्रति क्विंटल बोला जा रहा है। बता दें कि पिछले सीजन में मोठ ऊपर में 7000 रुपए एवं नीचे में 4800 रुपए प्रति क्विंटल बिका था। देश में राजस्थान और गुजरात दो ही मोठ उत्पादक राज्य हैं। मोठ की सालाना खपत 25-28 लाख बोरी के करीब रहती है।
इंदौर। घरेलू बाजार में होटल, रेस्टोरेंटस एवं कैटरिंग सैक्टर की मांग के साथ नई फसल की आवक में देरी एवं कमजोर स्टॉक से काबुली चने के भावों में तेजी आई है। मध्य प्रदेश की मुख्य मंडी इंदौर में बुधवार को काबुली चने के भाव में 700-1000 रुपए प्रति क्विंटल की जोरदार बढ़त आई जिसकी वजह राज्य की मंडियों में नई फसल की आवक में हो रही देरी एवं पुराने स्टॉक की तंगी होना है।
इंदौर मंडी में पुराना काबुली चना 7400-8200 रुपए और नया काबुली चना 8000-8300 रुपए प्रति क्विंटल पर कारोबार कर रहा है। कारोबारियों का कहना है कि लॉक डाउन हटने के बाद काबुली चने में होटल, रेस्टोरेंटस एवं कैटरिंग सैक्टर की मांग खासी देखी जा रही है।
आल इंडिया दाल मिल्स एसोसिएशन के प्रेसीडेंट सुरेश अग्रवाल का कहना है कि काबुली चने का घरेलू उत्पादन इस साल पिछले वर्ष की तुलना में 25 फीसदी कम रहने की संभावना है जबकि इसकी श्रीलंका, दुबई और अलजीरिया सहित अनेक देशों से अच्छी मांग है। एक निर्यातक के मुताबिक देश से पिछले कुछ वर्षों से हर साल एक लाख टन से अधिक काबुली चना निर्यात होता हो रहा है जबकि पाकिस्तान के साथ कुछ वर्ष से कारोबार बंद है। यदि पाकिस्तान के साथ कारोबार हो रहा होता तो यह निर्यात 50000-60000 टन अधिक होता।
काबुली चने का वैश्विक स्टॉक भी काफी कम है जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके दाम चढ़े हैं। मैक्सिको का काबुली चना अंतरराष्ट्रीय बाजार में 1150 डॉलर प्रति टन ऑफर हो रहा है। श्रीलंका, दुबई, सऊदी अरब, ईरान, टर्की और इजिप्त भारतीय काबुली चने पर निर्भर बाजार हैं। देश में इस साल काबुली चने का उत्पादन कम होने से वर्ष 2021 में तकरीबन 70-75 हजार टन काबुली चने का निर्यात होने की संभावना है।
मध्य प्रदेश में चालू रबी सीजन में काबुली चने की पैदावार पिछले साल की तुलना में 13 फीसदी घटी है। इस साल काबुली चने के उत्पादन में 13 फीसदी की कमी दिख रही है वहीं बोआई में 7 फीसदी और प्रति हैक्टेयर यील्ड 6 फीसदी कम है। वर्ष 2020-21 में मध्य प्रदेश में काबुली चने की बोआई 255000 हैक्टेयर में हुई जो वर्ष 2019-20 के 275000 हैक्टेयर की तुलना में सात फीसदी कम है। वर्ष 2020-21 में काबुली चने का उत्पादन वर्ष 2019-20 के उत्पादन 265380 टन की तुलना में 13 फीसदी घटकर 232050 टन रहने का अनुमान है। वर्ष 2020-21 में इसकी उत्पादकता 910 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रहेगी जो वर्ष 2019-20 में 965 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर थी यानी इसमें 6 फीसदी की गिरावट देखने को मिल रही है।
बता दें कि काबुली चने की मुख्य खपत रेस्टोंरेंटस, स्ट्रीट स्टॉल्स, शादियों और सामाजिक फंक्शन, होटल्स में होती है जबकि इसकी घर में खपत सीमित होती है। कोरोना वायरस की वजह से वर्ष 2020 में इसकी मांग कमजोर रही, लेकिन वर्ष 2021 में इसकी मांग बेहतर रहने की उम्मीद की जा रही है। कारोबारियों के मुताबिक समूचे देश में 2019 कैलेंडर वर्ष में काबुली चने की खपत 4.20 लाख टन थी जो वर्ष 2020 में कोरोना माहमारी की वजह से गिरकर 2.65 लाख टन रहने का अनुमान है। यह खपत कैलेंडर वर्ष 2018 में चार लाख टन थी।
कारोबारियों का कहना है कि सब सामान्य होने पर काबुली चने की मासिक खपत 30-35 हजार टन रहती है। देश की प्रमुख मंडी इंदौर में नया काबुली चना 44/46 काउंट 8300 रुपए और 58/60 काउंट 8000 रुपए प्रति क्विंटल ऑफर हो रहा है। बता दें कि वर्ष 2020 में काबुली चना 44/46 काउंट ने अपने तीन साल के उच्च स्तर 7200 रुपए प्रति क्विंटल के लेवल को तोड़ा था।
मुंबई। तुअर (अरहर) के दाम चालू फसल वर्ष 2020-21 के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 6000 रुपए प्रति क्विंटल को पार कर मजबूती से टिके हुए हैं। तुअर के दाम एमएसपी से ऊपर होने की वजह से नाफैड महाराष्ट्र में तुअर की खरीद नहीं कर पा रही है। नाफैड का लक्ष्य पांच राज्यों से 15 लाख टन तुअर की खरीद करना है। महाराष्ट्र एवं कर्नाटक की मुख्य मंडियों में तुअर का भाव 6100-7250 रुपए प्रति क्विंटल बोला जा रहा है।
इंडियन प्लसेस एंड ग्रेन्स एसोसिएशन के चेयरमैन जीतू भेडा का कहना है कि शुरुआत में तुअर का उत्पादन 40 लाख टन रहने का अनुमान था लेकिन दूसरे अग्रिम उत्पादन अनुमान के मुताबिक यह घटकर 38 लाख टन रहने का अनुमान है। जबकि, इंडस्ट्री का आंकलन 32-35 लाख टन है। उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में तुअर दाल रिटेल में 90-100 रुपए प्रति किलोग्राम बिक रही है एवं यदि सरकार ने हस्तक्षेप नहीं किया या मई-जून में त्यौहारों से पहले आयात कोटा घोषित नहीं किया तो इसके दाम और बढ़ सकते हैं।
भेडा ने बताया कि भाव तेज होने पर कुछ कारोबारी स्टॉक बढ़ाने में भरोसा करते हैं। हालांकि, म्यांमार एवं मोजाम्बिक में इस सीजन में तुअर का उत्पादन कम होने की खबर आने एवं आस्ट्रेलिया में इसकी खेती शुरु होने और अपने देश में रकबा बढ़ने की संभावना से सीड के रुप में इसकी खपत बढ़ी है जिससे तुअर की तंगी दिखाई दे रही है।
दूसरी ओर, आल इंडिया दाल मिलर्स एसोसिएशन ने सरकार से तुअर के दाम स्थिर करने के लिए आयात कोटा जल्दी घोषित करने की मांग की है। एसोसिएशन के प्रेसीडेंट सुरेश अग्रवाल का कहना है कि इस साल तुअर का उत्पादन उम्मीद से 20 फीसदी कम है। तुअर का उत्पादन 40 लाख टन होने की संभावना थी लेकिन अधिक बारिश होने से फसल को नुकसान हुआ है। इसके अलावा बड़े खरीददारों और स्टॉकिस्टों की मजबूत मांग से भाव चढ़े हैं।
उन्होंने कहा कि पिछले साल तुअर का आयात करने के लिए सरकार ने 43 दिन का समय दिया था लेकिन इस साल यदि आयात करने की अनुमति जल्दी दे दी जाए तो 10 महीने का समय मिलता है और इतने समय में बेहतर तरीके से आयात किया जा सकता है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक देश में इस साल तुअर आयात 6.5 लाख टन तक पहुंच सकता है। जबकि पिछले साल यह आयात 4.5 लाख टन था।
मुंबई। चना मार्च वायदा एनसीडीईएक्स ने सोमवार को चार फीसदी के ऊपरी सर्किट के साथ अपने रेजिस्टेंस 4842 को तोड़ दिया है। दैनिक तकनीकी चार्ट पर यह वायदा मजबूती दिखा रहा है एवं इसके 5050 रुपए का लेवल टेस्ट करने की उम्मीद है।
पृथ्वी फिनमार्ट, मुंबई के कमोडिटी हैड डाइरेक्टर मनोज कुमार जैन का कहना है कि चना मार्च वायदा में लांग पोजीशन को बनाए रखना चाहिए एवं लक्ष्य 5050 रुपए का रखें जबकि स्टॉप लॉस बंद आधार पर 4840 रुपए से नीचे का लगाएं। यदि चना वायदा 5050 रुपए के ऊपर टिकता है तो यह 5200 रुपए तक पहुंच सकता है।
अहमदाबाद। कमोडिटी एक्सचेंज एनसीडीईएक्स में बीते कारोबारी सप्ताह के दौरान चना मार्च वायदा साप्ताहिक खुले भाव से 54 अंक की बढ़त के साथ 4749 पर बंद हुआ। जबकि, चना वायदा ने पिछले सप्ताह 4887 का ऊपरी एवं 4602 का निचला स्तर टेस्ट किया।
तकनीकी विश्लेषक कमलेश शाह का कहना है कि चना के लिए इस सप्ताह 4890 और इसके ऊपर 5030 के ऊपरी स्तर महत्वपूर्ण रेजिस्टेंस का काम करेंगे। इसके ऊपर जाने पर 5175 और 5315 रुपए तक पहुंच सकता है। जबकि, 4605 और 4460 अहम सपोर्ट लेवल होंगे। इस लेवल के टूटने पर 4320 और 4175 रुपए के अगले सपोर्ट लेवल हैं।
मुंबई। चना मार्च वायदा एनसीडीईएक्स में कल गुरुवार को चार फीसदी का ऊपरी सर्किट लगा एवं इसने दैनिक बंद आधार पर 4800 रुपए के मुख्य अवरोध को पार कर लिया।
पृथ्वी फिनमार्ट, मुंबई के कमोडिटी हैड डाइरेक्टर मनोज कुमार जैन का कहना है कि यदि आज चना वायदा 4850 रुपए के ऊपर बंद होता है तो यह शार्ट टर्म में बढ़कर 5050 तक पहुंच सकता है। चना वायदा के लिए बंद आधार पर 4670 रुपए का मुख्य सपोर्ट लेवल है। कारोबारियों को चना वायदा 4800 रुपए के ऊपर रहने पर खरीदना चाहिए एवं लक्ष्य 5050 का रहेगा जबकि स्टॉप लॉस बंद आधार पर 4700 रुपए का रखें।
नई दिल्ली। चने के कारोबार के लिए मौजूदा वर्ष अच्छा रहने के आसार हैं। वर्ष 2020 में कोरोना महामारी की वजह से चने की मांग में गिरावट आई लेकिन वर्ष 2021 में अब इसकी मांग में सुधार देखा जा रहा है एवं अन्य दलहनों से भी इसे सपोर्ट मिल रहा है। यह कहना है एग्री फॉरमर्स एंड ट्रेड एसोसिशन के महासचिव एवं दलहन कारोबारी सुनील बलदेवा का।
बलदेवा का कहना है कि देश में इस साल गुजरात को छोड़कर अन्य चना उत्पादक राज्यों में यील्ड कमजोर है। हालांकि, सारी स्थिति 10-15 मार्च के बीच स्पष्ट होगी लेकिन जिस तरह मंडियों में नए चने की आवक है और मौसम में परिवर्तन आया है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वर्ष 2021 में चने का उत्पादन पिछले साल की तुलना में दस फीसदी कम होगा। इस साल चने की उपज 65 लाख टन रहने की संभावना है जो बीते रबी सीजन में 70-72 लाख टन थी। चने के पुराने स्टॉक को देखें तो जहां कारोबारियों के पास एक लाख टन के आसपास स्टॉक होगा वहीं नाफैड के पास 11 लाख टन चना है। इस तरह कुल उपज और पुराने स्टॉक के साथ चने में हमारी स्थित सुखद नहीं है क्योंकि सामान्य हालात में चने की सालाना मांग 70 लाख टन के करीब रहती है।
उन्होंने कहा कि इस साल मसूर में भी यील्ड कमजोर है, तुअर में भी यही हालात है और अब चने में भी यील्ड कम आ रही है। चने को इस तरह अन्य दलहन में आई मजबूती का सपोर्ट भी मिल रहा है। वे कहते हैं कि चने में मांग बनी रहेगी क्योंकि मटर की उपलब्धता भी नहीं है और मटर के दाम चने की तुलना में काफी ऊंचे हैं। कुल मिलाकर वर्ष 2021 चने के कारोबार के लिए अच्छा साल रहने के आसार हैं। वे कहते हैं कि चने के दाम कमोडिटी एक्सचेंज एनसीडीईएक्स में निकट भविष्य में 5000 रुपए क्विंटल को छू सकते हैं।
इंदौर। देश में चने की नई फसल की बैलेंसशीट टाइट देखते हुए चने के भाव में जारी बढ़त बनी रहने के आसार हैं। इंदौर मंडी में चना 5000 रुपए प्रति क्विंटल के लेवल को छू गया है एवं मार्च अंत तक यह हाजिर में और 200-300 रुपए आसानी से तेज होता दिख रहा है। यह कहना है कि दलहन कारोबारी राहुल वोरा का।
राहुल वोरा के मुताबिक इस साल गुजरात में चने की उपज 6-7 लाख टन आने की संभावना है जो पिछले साल 3-4 लाख टन थी जबकि महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान में इसकी यील्ड कमजोर है। वे कहते हैं कि सरकार ने 115 लाख टन उत्पादन का अनुमान जारी किया है लेकिन मुझे यह 82 लाख टन से अधिक नहीं लगता। मंडियों में चने की आवक एवं चना उत्पादक राज्यों से फसल की मिल रही रिपोर्ट और तापमान में बढ़ोतरी से चने की उपज उम्मीद से कमजोर है।
मध्य प्रदेश की इंदौर मंडी में हाजिर में चना 5000 रुपए प्रति क्विंटल के लेवल पर पहुंच गया है एवं मार्च अंत तक इसमें 200-300 रुपए आसानी से बढ़ सकते हैं। वे कहते हैं यदि सरकार की दलहन नीति में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ तो यह वर्ष चने के साथ सभी दलहन के लिए अच्छा रहने के आसार हैं।
इंदौर। मध्य प्रदेश में चालू रबी सीजन में काबुली चने की पैदावार पिछले साल की तुलना में 13 फीसदी घटने की संभावना नजर आ रही है। काबुली चने की फसल के सर्वे से पता चला है कि जहां इसके उत्पादन में इस साल 13 फीसदी की कमी दिख रही है वहीं बोआई में 7 फीसदी और प्रति हैक्टेयर यील्ड 6 फीसदी कम है। बीते सीजन में ऊंचे प्राइस न मिलने एवं कुछ जगह मौसम परिवर्तन से किसान देसी चने, लहसुन जैसी फसलों की ओर मुड़े हैं। देश में अब पुराने काबुली चने का स्टॉक तकरीबन 30-35 हजार टन के आसपास है।
सर्वे के मुताबिक वर्ष 2020-21 में मध्य प्रदेश में काबुली चने की बोआई 255000 हैक्टेयर में हुई जो वर्ष 2019-20 के 275000 हैक्टेयर की तुलना में सात फीसदी कम है। वर्ष 2020-21 में काबुली चने का उत्पादन वर्ष 2019-20 के उत्पादन 265380 टन की तुलना में 13 फीसदी घटकर 232050 टन रहने का अनुमान है। वर्ष 2020-21 में इसकी उत्पादकता 910 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रहेगी जो वर्ष 2019-20 में 965 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर थी यानी इसमें 6 फीसदी की गिरावट देखने को मिल रही है।
सर्वे के मुताबिक चालू रबी सीजन में मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में काबुली चने की बोआई में काफी कमी आई जबकि निमाड़ में इसकी बोआई ठीक हुई है। मध्य प्रदेश के कई इलाकों में किसानों ने देसी चने को वरीयता दी है क्योंकि जहां सरकार ने इसका न्यनूतम समर्थन मूल्य बढ़ाया है वहीं बोआई के समय इसके दाम तेजी से ऊपर उठ रहे थे। इसके अलावा, लहसुन भी किसानों को बेहतर रिटर्न दे रहा है।
कारोबारियों का कहना है कि सब सामान्य होने पर काबुली चने की मासिक खपत 30-35 हजार टन रहती है। ऐसे में काबुली चने का आयात करना पड़ सकता है लेकिन यह तभी फायदे का सौदा होगा जब काबुली चने के मौजूदा भाव 2000 रुपए प्रति क्विंटल तक बढ़े क्योंकि आयातित काबुली चना काफी महंगा है जिससे इसका आयात घाटे का सौदा होगा। देश की प्रमुख मंडी इंदौर में काबुली चना 44/46 काउंट 6900 रुपए और 58/60 काउंट 6100 रुपए प्रति क्विंटल ऑफर हो रहा है। बता दें कि वर्ष 2020 में काबुली चना 44/46 काउंट ने अपने तीन साल के उच्च स्तर 7200 रुपए प्रति क्विंटल के लेवल को तोड़ा था।
श्रीलंका, दुबई, सऊदी अरब, ईरान, टर्की और इजिप्त भारतीय काबुली चने पर निर्भर बाजार हैं। भारत से वर्ष 2021 में तकरीबन 70-75 हजार टन काबुली चने का निर्यात होने की संभावना है। कुल मिलाकर काबुली चने की बैलेंसशीट को देखें तो इसकी जुलाई महीने में खासी शार्टेज हो सकती है जो इसके दाम ऊपर उठा सकती है।
Friday March 5,2021
मुंबई। केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए चार लाख टन उड़द का आयात को मुंबई। केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए चार लाख टन उड़द का आयात को . . . . .
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