मुंबई। देश भर के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में अधिक बारिश से इस साल की खरीफ दलहन जैसे तुअर (अरहर) और उड़द पर विपरीत असर पड़ने की संभावना है, भले ही दलहनी फसलों का कुल क्षेत्रफल पिछले साल की तुलना में अधिक है। कम कवरेज के कारण तुअर का उत्पादन प्रभावित हो सकता है, जबकि सितंबर में बारिश उड़द के उत्पादन के लिए चिंता का कारण होगी। हालांकि मूंग का उत्पादन स्थिर रहने की संभावना है।
कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार 29 जुलाई तक दलहन का रकबा एक साल पहले के 103.23 लाख हैक्टेयर की तुलना में 106.18 लाख हैक्टेयर पहुंच गया। सभी खरीफ दलहनों की बुवाई का मौसम लगभग समाप्त हो गया है। जबकि तुअर यानी अरहर का रकबा 13.5 प्रतिशत घटकर 36.11 लाख हैक्टेयर(एक साल पहले की इसी अवधि में 41.75 लाख हैक्टेयर) रहा है, वहीं उड़द, मूंग और अन्य खरीफ दलहनों का रकबा बढ़ गया है। उड़द का रकबा मामूली रूप से 28.01 लाख हैक्टेयर (27.94 लाख हैक्टेयर) बढ़ा है, जबकि मूंग की बुवाई 15.5 फीसदी बढ़कर 29.26 लाख हैक्टेयर (25.29 लाख हैक्टेयर) हुई है। अन्य दलहनों का रकबा भी 57 प्रतिशत बढ़कर 12.66 लाख हैक्टेयर (8.03 लाख हैक्टेयर) पहु्च गया है, जबकि कुल्थी का रकबा घटकर 0.15 लाख हैक्टेयर (0.21 लाख हैक्टेयर) रहा है।
इस साल 2021 की तुलना में खरीफ फसलों में दलहन की कुल बुवाई में कमी आई है। हालांकि, न्यूनतम गिरावट को देखते हुए दलहन की बुवाई में तीन प्रतिशत की वृद्धि हुई है। तुअर की खेती में 13 प्रतिशत की गिरावट आई है जो कि मुख्य खरीफ दलहन में से एक है। बुवाई में इस गिरावट को खराब मौसम और कम बारिश के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिसके कारण किसान दूसरी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं या अपनी जमीन को ऐसे ही छोड़ रहे हैं।
प्रमुख दलहन उत्पादक राज्यों में, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में रकबे में वृद्धि हुई है, जबकि महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और तेलंगाना में गिरावट देखी गई है। प्रतिस्पर्धी फसलों जैसे कपास, सोयाबीन और यहां तक कि गन्ने के लिए आकर्षक कीमतों ने इन पारंपरिक दलहन उत्पादक क्षेत्रों में किसानों को अपनी ओर खींचा है। जून के दौरान देरी और कम बारिश ने कुछ राज्यों में बुवाई को पीछे धकेल दिया, जुलाई के दौरान अधिक वर्षा - जिसके परिणामस्वरूप अन्य राज्यों में महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना के कुछ हिस्सों में खेतों में पानी भर गया जिससे दलहन फसलों को नुकसान हुआ है।
कलबुर्गी (गुलबर्गा) में कर्नाटक प्रदेश रेड ग्राम ग्रोअर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बसवराज इंगिन ने कहा, तुअर के तहत लगभग 5.5 लाख हैक्टेयर में बुवाई हुई है लेकिन इस साल अब तक अधिक बारिश से 2 लाख हैक्टेयर एरिया प्रभावित हो सकता है। इस साल कलबुर्गी में तुअर के तहत रकबे में लगभग 2 लाख हैक्टेयर की गिरावट आई है क्योंकि किसानों ने सोयाबीन, गन्ना और कपास की ओर रुख किया है। साथ ही, पिछले दो वर्षों में खेती के दौरान अधिक बारिश का खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है। कर्नाटक सरकार के मुताबिक कलबुर्गी जिले में 1 जून से 3 अगस्त तक चल रहे मानसून के मौसम में 40 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है, पिछले सात दिनों के दौरान सामान्य से 115 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई है। .
इसी तरह, कर्नाटक में बीदर और यादगीर के निकटवर्ती जिले और महाराष्ट्र में लातूर, उस्मानाबाद और सोलापुर, और तेलंगाना में विकाराबाद, महबूबनगर और संगारेड्डी, जहां तुअर की खेती होती है में भी अधिक बारिश का खामियाजा भुगतना पड़ा है। महाराष्ट्र के लातूर के एक मिलर का कहना है कि तुअर के रकबे में गिरावट सरकार के 13 फीसदी के अनुमान से ज्यादा हो सकती है। महाराष्ट्र और कर्नाटक में अधिक बारिश के कारण फसल के कुछ नुकसान की खबरें हैं, जिससे इन राज्यों में क्षेत्रवार 5-8 प्रतिशत की कमी आ सकती है। फसल के नुकसान का आकलन करना जल्दबाजी होगी क्योंकि तुअर की नई फसल आने में अभी चार से पांच महीने बाकी है।
इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन्स एसोसिएशन (आईपीजीए) के अध्यक्ष बिमल कोठारी ने कहा कि जहां तक तुअर का सवाल है तो कुछ चिंताएं हो सकती हैं क्योंकि रकबा 13 फीसदी कम है। कुछ जगह बुवाई अभी भी चल रही है, लेकिन ज्यादातर बुवाई समाप्त हो गई है।
मार्च 2023 तक सरकार द्वारा तुअर के आयात को बढ़ाने और पूर्वी अफ्रीकी देशों में नई फसल के महीने के अंत तक बाजारों में आने से आपूर्ति पर कोई असर पड़ने की संभावना नहीं है। हाल के दिनों में तुअर की कीमतों में फसल के नुकसान की खबरों के कारण मजबूती आई है और यह 7,800-8,000 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास चल रही है।
कोठारी का कहना है कि हम अफ्रीका में अच्छी फसल की उम्मीद कर रहे हैं, जिसे अभी काटा जाएगा। अफ्रीकी फसल लगभग 6-7 लाख टन है। जब अफ्रीकी तुअर भारतीय बाजार में आने लगे तो कीमतों में स्थिरता और नरमी आनी चाहिए। यह अच्छा है कि त्यौहार के समय भारत में फसल आ रही है, जिससे उपभोक्ताओं और सरकार को राहत मिल रही है।
जहां तुअर की फसल को लेकर चिंता बनी हुई है, वहीं अन्य प्रमुख खरीफ दालों - उड़द और मूंग का रकबा पिछले साल के स्तर से अधिक है। उड़द का रकबा मध्य प्रदेश में 13.74 लाख हैक्टेयर (12.83 लाख हैक्टेयर), महाराष्ट्र में 3.99 लाख हैक्टेयर (3.61 लाख हैक्टेयर), राजस्थान 3.10 लाख हैक्टेयर (3.06 लाख हैक्टेयर), उत्तर प्रदेश में 4.53 लाख हैक्टेयर (3.46 लाख हैक्टेयर) है, जबकि गुजरात में यह आधे से कम 0.61 लाख हैक्टेयर (1.23 लाख हैक्टेयर) और कर्नाटक में 0.92 लाख हैक्टेयर (1.01 लाख हैक्टेयर) है। सितंबर के दौरान मानसून की वापसी के कारण हुई बारिश उड़द के लिए चिंता का विषय है। हाल के वर्षों में, सितंबर के दौरान हुई अतिरिक्त बारिश ने उड़द की फसल को प्रभावित किया है, जिससे गुणवत्ता और उत्पादन प्रभावित हुआ है।
जहां तक मूंग की बुवाई की बात है, राजस्थान में 19.41 लाख हैक्टेयर (14 लाख हैक्टेयर) में 38 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है, जबकि मध्य प्रदेश में भी 1.39 लाख हैक्टेयर (1.38 लाख हैक्टेयर) में मामूली वृद्धि देखी गई है। हालांकि, कर्नाटक में 3.89 लाख हैक्टेयर (3.93 लाख हैक्टेयर) में मामूली गिरावट देखी गई है, जबकि महाराष्ट्र में 2.65 लाख हैक्टेयर (3.46 लाख हैक्टेयर) की गिरावट देखी गई है। पूर्वी राजस्थान और पूर्वी मध्य प्रदेश में जहां मूंग की बुवाई अच्छी रही है, वहीं कर्नाटक और राजस्थान में अधिक बारिश से मूंग की फसल को नुकसान होने की खबर है। मूंग में नुकसान का आकलन करना मुश्किल है क्योंकि राजस्थान के लगभग 7-8 जिलों में अधिक बारिश हुई है। अगस्त के अंत तक हम जमीनी हकीकत जानने के बाद एक स्पष्ट तस्वीर मिल पाएगी।
तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, 2021-22 में कुल खरीफ दलहन उत्पादन 82.5 लाख टन था। इसमें 43.5 लाख टन तुअर, 18 लाख टन उड़द और 14.8 लाख टन मूंग शामिल है। अन्य दलहन का उत्पादन 6.2 लाख टन रहा। खरीफ 2022 के लिए, सरकार ने 105.5 लाख टन दलहन उत्पादन लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसमें 45.5 लाख टन तुअर, 27 लाख टन उड़द, 25 लाख टन मूंग और आठ लाख टन अन्य दलहन शामिल हैं।
(मोलतोल ब्यूरो; +91-75974 64665)
नई दिल्ली। कम रकबे के बीच कारोबारी बाजार में तंग सप्लाई खड़ी कर तुअर के दाम ऊपर ले जा रहे हैं। केंद्र सरकार ने अपने अध्ययन के बाद सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत तुअर यानी अरहर पर स्टॉक प्रकटीकरण को लागू करने के लिए कहा है।
उपभोक्ता मामलों के विभाग ने 12 अगस्त, 2022 को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को आवश्यक वस्तुओं की धारा 3 (2) (एच) और 3 (2) (i) के तहत तुअर के स्टॉक होल्डर्स द्वारा स्टॉक प्रकटीकरण को लागू करने का निर्देश जारी किया। अधिनियम, 1955, और स्टॉक की निगरानी और सत्यापन करने के लिए भी कहा है। एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों को स्टॉकहोल्डर संस्थाओं को उपभोक्ता मामलों के विभाग के ऑनलाइन निगरानी पोर्टल पर उनके द्वारा रखे गए स्टॉक का डेटा साप्ताहिक आधार पर अपलोड करने का निर्देश देने के लिए भी कहा गया है।
12 अगस्त को कृषि मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, तुअर के तहत क्षेत्र एक साल पहले के 47.55 लाख हैक्टेयर की तुलना में 42 लाख हैक्टेयर है जो 12 प्रतिशत कम रहा क्योंकि प्रमुख उत्पादक राज्यों जैसे कि महाराष्ट्र और कर्नाटक में तुअर की बुवाई गिरी है।
सरकारी बयान में कहा गया है कि ऐसी खबरें हैं कि स्टॉकिस्ट और व्यापारियों के कुछ वर्ग कीमतों को ऊपर की ओर ले जाने के लिए कृत्रिम कमी पैदा करने के प्रयास में सीमित बिक्री का सहारा ले रहे हैं। कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के प्रमुख तुअर उत्पादक राज्यों के कुछ हिस्सों में अधिक वर्षा और जलभराव के कारण पिछले साल की तुलना में खरीफ की बुवाई में धीमी प्रगति के बाद जुलाई के दूसरे सप्ताह से तुअर की खुदरा कीमत ऊपर की ओर रही है।
आने वाले त्यौहारों के महीनों के दौरान अनुचित मूल्य वृद्धि की स्थिति में आवश्यक उपाय करने के लिए केंद्र सरकार घरेलू और विदेशी बाजारों में दलहन की समग्र उपलब्धता और कीमतों पर करीब से नजर रख रहा है। बयान में कहा गया है कि घरेलू बाजार में दलहन की पर्याप्त उपलब्धता बनी रही जिसके लिए सरकार के पास वर्तमान में लगभग 38 लाख टन दलहन हैं, जो बाजार में उपलब्ध स्टॉक को और बढ़ाने के लिए जारी की जा रही हैं।
इंडिया पल्स एंड ग्रेन्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बिमल कोठारी ने कहा कि सरकार तुअर की कीमतों में वृद्धि के बारे में चिंतित है, जो पिछले डेढ़ महीने में 10-15 रुपए प्रति किलोग्राम बढ़ी है।
कोठारी ने कहा कि निश्चित रूप से उत्पादन के मोर्चे पर चिंता है। हमने हाल ही में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय को तुअर उत्पादन पर चिंताओं से अवगत कराया था और अनुरोध किया था कि व्यापारियों और मिलों पर छापा मारने और स्टॉक सीमा लगाने जैसे कोई प्रतिगामी कदम न उठाएं। एक उद्योग के रूप में हम अधिकतम आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सरकार के साथ काम करने के लिए तैयार हैं ताकि निरंतर आपूर्ति हो और कीमतें स्थिर रहें। अंतत: केवल अधिक आपूर्ति ही कीमतों को कम करेगी। हम चाहते हैं कि सरकार उत्पादन बढ़ाकर अधिक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रगतिशील कदम उठाए।
जहां कृषि मंत्रालय को रकबे में 10 फीसदी की गिरावट दिख रही है, वहीं कारोबारियों को उम्मीद है कि तुअर के रकबे में करीब 20 फीसदी की गिरावट आएगी।
कोठारी ने कहा कि व्यापारियों को उम्मीद है कि तुअर का उत्पादन कम होगा। हमें घरेलू खपत के लिए 40 लाख टन से ज्यादा की जरूरत है, जबकि हमारा घरेलू उत्पादन 30 से 35 लाख टन के बीच रहने की संभावना है, जो काफी नहीं है। सरकार ने तुअर के आयात को खुले सामान्य लाइसेंस के तहत रखा है और आयात अफ्रीका में सबसे कम विकसित देशों (एलडीसी) देशों से शुल्क मुक्त हो रहा है। पूर्वी अफ्रीकी देशों में फसल की कटाई शुरू हो गई है और अगले महीने से आवक की उम्मीद है। अगले 2-3 महीनों में अफ्रीका और म्यांमार से कुल आवक 6-7 लाख टन तुअर आ सकती है जो समय त्यौहारों का होगा। इस बीच, अधिक उत्पादन के कारण चना की कीमत कम हो रही है और कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में बड़ी फसलों के कारण मसूर की कीमतें कम हो रही हैं।
सिडनी। आस्ट्रेलिया ने जून 2022 में 25892 टन चने का निर्यात किया जबकि मसूर का निर्यात 74856 टन था। यह जानकारी आस्ट्रेलियन ब्यूरो ऑफ स्टेटिक्स (एबीएस) ने दी। चने का निर्यात जून में मई की तुलना में 16 फीसदी और मसूर का निर्यात 18 फीसदी घटा।
आस्ट्रेलियाई चने की जून में खरीद में पाकिस्तान 10349 टन के साथ पहले स्थान पर रहा। नेपाल 3323 टन और बांग्लादेश 2420 टन के साथ दूसरे एवं तीसरे स्थान पर रहे। मसूर का सबसे ज्यादा आयात संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने 27500 टन किया जबकि इजिप्त 21639 टन और पाकिस्तान 9571 टन के साथ दूसरे एवं तीसरे स्थान पर रहे।
आस्ट्रेलिया से चने का निर्यात चुनिंदा देशों पर नजर
देश
जनवरी-मार्च
अप्रैल
मई
जून
बांग्लादेश
153377
14486
16299
2420
कनाडा
2311
2341
1228
1594
इजिप्त
993
999
501
697
भारत
-
228
469
236
नेपाल
9371
3669
3802
3323
पाकिस्तान
25209
1099
4874
10349
श्रीलंका
409
47
48
369
टर्की
1498
0
506
752
यूएई
4623
2018
1186
1822
यूके
2935
1599
730
1009
अमरीका
835
77
117
493
कुल निर्यात सभी देश
203980
27245
30906
25892
आस्ट्रेलिया से मसूर का निर्यात चुनिंदा देशों पर नजर
173632
48143
46814
2475
40016
3842
21639
22329
27428
32165
2141
7285
632
1023
9571
7564
1256
2503
1746
21448
10557
8471
8987
32330
27500
306783
92312
91356
74856
स्त्रोत : आस्ट्रेलियन ब्यूरो ऑफ स्टेटिक्स
मुंबई। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे प्रमुख दलहन उत्पादक देशों में आने वाले हफ्तों में बड़ी फसल की कटाई के साथ चालू वित्त वर्ष के दौरान भारत का मसूर आयात बढ़ने की संभावना है। वैश्विक स्तर मसूर के बम्पर उत्पादन को देखते हुए इसके भाव फिसलने लगे हैं।
इंडियन प्लसेस एंड ग्रेन्स एसोसिएशन के चेयरमैन बिमल कोठारी का कहना है कि मसूर की कीमतें कम होने लगी हैं और पिछले कुछ हफ्तों में 72 रुपए से घटकर 66 रुपए प्रति किलोग्राम आ गई हैं। मसूर के भाव और टूटेंगे और यह 60 रुपए के आसपास आ जाएगी क्योंकि कनाडा में अच्छी फसल है, जो लगभग 25 लाख टन के करीब रहेगी। दो महीने के बाद, ऑस्ट्रेलिया में लगभग 8 से 9 लाख टन मसूर आने की संभावना है। नतीजतन, इन दोनों देशों से भारतीय बाजार में प्रचुर मात्रा में आपूर्ति होगी और कीमतों में और कमी आएगी। खासी सप्लाई के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में भाव गिरेंगे।
कनाडा से मुंबई बंदरगाह पर कंटेनरों में आने वाली मसूर का भाव कीमत 6,700 रुपए प्रति क्विंटल है, जबकि ऑस्ट्रेलियाई मसूर का दाम 6,800 रुपए प्रति क्विंटल है। एक महीने पहले, कीमतें क्रमशः 7,100 और 7,200 रुपए प्रति क्विंटल थीं। मुंद्रा और हजीरा बंदरगाह के लिए भाव 6,450 रुपए प्रति क्विंटल है।
मसूर की कीमतों में गिरावट भारत में उपभोक्ताओं के लिए अच्छा संकेत है क्योंकि कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में घटे रकबे और अधिक बारिश से तुअर (अरहर) को लेकर काफी चिंता है। बता दें कि कम रकबे की चिंताओं के कारण हाल के दिनों में तुअर की कीमतों में तेजी आई है। कोठारी का कहना है कि मसूर कभी-कभी एक विकल्प की भूमिका निभाती है जब तुअर के दाम ऊंचे होते हैं।
वर्तमान में, मसूर का आयात खुले सामान्य लाइसेंस (ओजीएल) के तहत होता है। भारत ने वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान लगभग 6.67 लाख टन मसूर का आयात किया था, जो पिछले वर्ष में 11.16 लाख टन था। कारोबारियों को उम्मीद है कि इस साल इसका आयात बढ़ेगा।
कमोडिटी ब्रोकरेज जेएलवी एग्रो के विवेक अग्रवाल का कहना है कि इस साल भारत का मसूर आयात करीब 12-15 लाख टन रहने की उम्मीद है। अग्रवाल ने कहा कि नई फसल सितंबर-अक्टूबर शिपमेंट के लिए जहाजों में 760 डॉलर प्रति टन की पेशकश की जा रही है। कीमतों में पिछले साल की इसी अवधि के 900 डॉलर प्रति टन की तुलना में लगभग 15 प्रतिशत की गिरावट आई है क्योंकि कनाडा में अच्छी फसल हो रही है और ऐसा ही ऑस्ट्रेलिया में भी है।
भारत में रबी सीजन के दौरान मसूर की खेती की जाती है और तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, उत्पादन 2021-22 के दौरान 14.4 लाख टन रहा, जो एक साल पहले 14.9 लाख टन था। भारत का मसूर उत्पादन 2007-08 में 8.1 लाख टन से दोगुना होकर 2017-18 में 16.2 लाख टन हो गया था, लेकिन बाद में 2019-20 में घटकर 11 लाख टन रह गया।
मुंबई। पिछले छह हफ्तों में तुअर (अरहर) दाल और उड़द दाल की कीमतों में 15 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है। जलभराव के कारण इन दोनों दलहन फसलों में नुकसान की वजह से चिंता बढ़ रही है। साथ ही चालू खरीफ सीजन में रकबे में गिरावट और कम कैरी फॉरवर्ड स्टॉक होना मुख्य कारक है।
महाराष्ट्र के लातूर में अच्छी गुणवत्ता वाली तुअर दाल का एक्स-मिल भाव लगभग छह सप्ताह पहले के 97 रुपए से बढ़कर 115 रुपए प्रति किलोग्राम हो गया है। प्रमुख तुअर उत्पादक क्षेत्रों में भारी वर्षा और जलजमाव ने फसल के नुकसान के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं।
कृषि मंत्रालय द्वारा जारी नवीनतम बुवाई के आंकड़ों के अनुसार, तुअर का रकबा एक साल पहले की तुलना में 4.6 फीसदी, जबकि उड़द के तहत 2 फीसदी कम था।
कारोबारियों का कहना है कि वर्तमान में, तुअर में फंडामेंटल मजबूत हैं। कोई बड़ा कैरी ओवर स्टॉक नहीं है, जबकि सोयाबीन की ओर किसानों के रुझान के कारण तुअर की बुवाई कम है। दूसरी ओर, हम अफ्रीका से पांच लाख टन की खेप की उम्मीद कर रहे हैं, जो अगस्त/सितंबर तक आएगी।
अधिक बारिश से उड़द की फसल को अधिक नुकसान होने की संभावना है। हालांकि, आपूर्ति की स्थिति दबाव में नहीं आ सकती है क्योंकि आयात बढ़ने की उम्मीद है। महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात में उड़द की फसल को कुछ नुकसान हुआ है, लेकिन सबसे बड़े और दूसरे सबसे बड़े उत्पादक मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में फसल अच्छी स्थिति में है। बारिश के नुकसान के बावजूद उड़द की कीमतें कम रहने की संभावना है क्योंकि म्यांमार से आयात बढ़ने की उम्मीद है।
भारत को करेंसी इश्यू के कारण पिछले चार महीनों के दौरान म्यांमार से ज्यादा उड़द नहीं मिली, जिससे मासिक उड़द आयात 50 फीसदी से अधिक कम हो गया। लेकिन अब करेंसी इश्यू म्यांमार के निर्यातकों के लिए अनुकूल हो गया है, जिससे आयात करने में मदद मिलेगी।
लखनऊ। एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि उत्तर प्रदेश 2022-23 (जुलाई-जून) फसल वर्ष में मूल्य स्थिरीकरण कोष योजना (प्राइस स्टेबलाइजेशन फंड स्कीम) के तहत दलहन का बफर स्टॉक बनाएगा। इसी तरह, झारखंड और नागालैंड भी दलहन का बफर स्टॉक बनाने के लिए केंद्र की वित्तीय सहायता का उपयोग करने के लिए सहमत हुए हैं।
अधिकारी ने कहा उत्तर प्रदेश, झारखंड और नागालैंड ने केंद्र द्वारा सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से दलहन और बागवानी वस्तुओं जैसे आलू और प्याज का बफर स्टॉक बनाने का आग्रह करने के बाद धन आवंटन का अनुरोध किया है।
अधिकारी ने कहा कि ये राज्य जल्द से जल्द न्यूनतम समर्थन मूल्य पर दलहन की खरीद के माध्यम से बफर स्टॉक बनाने की दिशा में काम कर सकते हैं और इसके बाद धन का वितरण किया जाएगा। उत्तर प्रदेश में भारत की दलहन का 10 फीसदी उत्पादन होता है। राज्य ने 2020-21 (जुलाई-जून) में 25 लाख टन दलहन का उत्पादन किया था। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा निर्धारित पांच साल के लक्ष्य के अनुसार, राज्य का लक्ष्य आने वाले पांच वर्षों में 36 लाख टन दलहन का उत्पादन करना है।
अधिकारी ने कहा कि 2021-22 (अप्रैल-मार्च) में, आंध्र प्रदेश, असम, ओडिशा, तेलंगाना, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ने दलहन का बफर स्टॉक बनाने के लिए वित्तीय सहायता का अनुरोध किया था और केंद्र ने इसके लिए 4.38 अरब रुपए आवंटित किए थे। हालांकि, केवल आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ने उन्हें आवंटित पूरे धन को समाप्त कर दिया था। अधिकारी ने कहा, सरकार उनके अनुरोध पर फंड के आकार का विस्तार करने के लिए तैयार है।
केंद्र ने 2014-15 (अप्रैल-मार्च) में प्रमुख कृषि और बागवानी वस्तुओं जैसे दलहन, प्याज और आलू की कीमतों में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने और एक रणनीतिक बफर स्टॉक बनाए रखने के लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष योजना की स्थापना की थी जो जमाखोरी और बेईमानी को हतोत्साहित करेगा।
सरकार मुख्य रूप से सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मध्याह्न भोजन योजना, एकीकृत बाल विकास सेवाओं के लिए बफर स्टॉक का उपयोग करती है। केंद्र के पास अपने बफर स्टॉक में आज तक कुल 714,120 टन दलहनं हैं।
नई दिल्ली। केंद्र सरकार मसूर में संभावित तेजी को ध्यान में रखते हुए जीरो इम्पोर्ट डयूटी जारी रखने का फैसला और छह महीने के लिए बढ़ा दिया है।
वित्त मंत्रालय ने नोटिफिकेशन में कहा है कि केंद्र सरकार ने 13 अक्टूबर 2021 को मसूर पर एग्रीकल्चरल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट सेस सितंबर अंत तक जीरो कर दिया था, जिसे अब मार्च 2022 तक बढ़ाया जा रहा है। यानी इसे 1 अक्टूबर से से छह महीने के लिए और बढ़ाया जा रहा है।
कारोबारियों का कहना है कि केंद्र सरकार के इस फैसले से मसूर की तेजी को ब्रेक लग सकता है, लेकिन अन्य दलहन के भाव बढ़ते हैं तो मसूर को भी सपोर्ट मिलेगा।
विनिपग। एग्रीकल्चर एंड एग्री फूड कनाडा (एएएफसी) ने अपनी जुलाई महीने की ताजा रिपोर्ट में कहा है कि बेहतर रिटर्न मिलने के बावजूद कनाडा में वर्ष 2022-23 में चने का रकबा चार फीसदी घटने की संभावना है। हालांकि, यील्ड ऊंची रहने से उत्पादन 47 फीसदी बढ़कर 1.12 लाख टन रहने का अनुमान है। लेकिन कैरी-इन-स्टॉक कम होने से इसकी सप्लाई में खासी गिरावट के आसार हैं। एएएफसी के मुताबिक कनाडा का चना निर्यात वर्ष 2021-22 में 1.60 लाख टन रहने का अनुमान है। यह वर्ष 2022-23 में 1.30 लाख टन रहने की संभावना है। जबकि, वर्ष 2020-21 में 1.59 लाख टन रहा। कनाडा में चने की खेती वर्ष 2021-22 में 74 हजार हैक्टेयर में रहने के आसार हैं जबकि वर्ष 2022-23 में इसके 71 हजार हैक्टेयर में रहने के आसार हैं। वर्ष 2020-21 में 1.20 लाख हैक्टेयर में चने की खेती हुई।
एएएफसी ने चने का उत्पादन वर्ष 2021-22 में 76 हजार टन रहने का अनुमान जताया गया है। यह अनुमान वर्ष 2022-23 के लिए 1.12 लाख टन है। यह वर्ष 2020-21 में 2.14 लाख टन था।
कनाडा में वर्ष 2021-22 में चने का कैरी आउट स्टॉक 1.50 लाख टन रहने की संभावना है। यह वर्ष 2020-21 में 2.75 लाख टन था। वर्ष 2022-23 में 1.10 लाख टन रहने का अनुमान है।
एएएफसी ने अपनी ताजा रिपोर्ट में फसल वर्ष 2021-22 के लिए चने का औसत भाव 960 कनाडाई डॉलर प्रति टन पर कायम रखा है। जबकि, फसल वर्ष 2022-23 के लिए भी 960 कनाडाई डॉलर प्रति टन रखा है। फसल वर्ष 2020-21 के लिए चने का औसत भाव 640 कनाडाई डॉलर था।
अमरीकी कृषि विभाग (यूएसडीए) ने वर्ष 2022-23 में अमरीका में चने का रकबा पिछले साल की तुलना में पांच फीसदी घटकर 3.5 लाख एकड़ रहने के आसार हैं। अमरीका में वर्ष 2022-23 में चने का उत्पादन 2.30 लाख टन होने का अनुमान है जो वर्ष 2021-22 की तुलना में 78 फीसदी अधिक होगा। अमरीकी चने के मुख्य बाजार यूरोपीयन संघ, पाकिस्तान और कनाडा बने रहेंगे।
विनिपग। एग्रीकल्चर एंड एग्री फूड कनाडा (एएएफसी) ने अपनी जुलाई महीने की रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2022-23 में मसूर का रकबा बीते साल के समान 17.5 लाख हैक्टेयर रहने की संभावना है। मसूर का उत्पादन बढ़कर 24.6 लाख टन होने का अनुमान है जबकि आपूर्ति अच्छी बनी रहने का अनुमान है। निर्यात भी वर्ष 2021-22 की तुलना में बढ़कर 21 लाख टन रहने का अनुमान है। एएएफसी के मुताबिक वर्ष 2021-22 में मसूर का उत्पादन 16.06 लाख टन रहने की संभावना है। यह अनुमान वर्ष 2022-23 के लिए 24.60 लाख टन आंका गया है। यह वर्ष 2020-21 में 28.68 लाख टन था। कनाडा से वर्ष 2021-22 में मसूर का निर्यात 15 लाख टन रहने की संभावना है। जो वर्ष 2022-23 में 21 लाख टन पहुंच सकता है। यह 2020-21 में 23.26 लाख टन रहा।
मसूर की बोआई वर्ष 2021-22 में 17.16 लाख हैक्टेयर में हुई जो वर्ष 2022-23 में 17.25 लाख हैक्टेयर पहुंचने को अनुमान है। यह वर्ष 2020-21 में 17.05 लाख हैक्टेयर में थी। मसूर का वर्ष 2021-22 सीजन में कैरी-आउट स्टॉक 2.50 लाख टन रहने का अनुमान है जो वर्ष 2020-21 में 4.07 लाख टन था। इसके वर्ष 2022-23 में 2.75 लाख टन रहने का अनुमान है।
एएफसी ने मसूर का औसत भाव फसल वर्ष 2021-22 के लिए भाव 1000 कनाडाई डॉलर प्रति टन पर कायम रखा है। जबकि, फसल वर्ष 2022-23 के लिए 835 कनाडाई डॉलर प्रति टन रखा है। फसल वर्ष 2020-21 के लिए 645 कनाडाई डॉलर था।
अमरीकी कृषि विभाग (यूएसडीए) की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष अमरीका में मसूर की खेती पिछले साल की तुलना में आठ फीसदी घटकर 6.5 लाख एकड़ रहने की उम्मीद है। अमरीका के मोनटाना में मसूर का रकबा घटने की संभावना है। अमरीका में मसूर का उत्पादन वर्ष 2021-22 की तुलना में दोगुना होकर 3.40 लाख टन होने का अनुमान है। अमरीकी मसूर के मुख्य बाजार यूरोपीयन संघ, भारत, कनाडा और मैक्सिको हैं।
विनिपग। एग्रीकल्चर एंड एग्रीफूड कनाडा (एएएफसी) ने अपनी जुलाई महीने की रिपोर्ट में फसल वर्ष 2022-23 के लिए सूखे मटर, चना और मसूर के दाम पिछले महीने के स्तर पर यथावत रखे हैं। जबकि, फसल वर्ष 2021-22 के लिए भी इन तीनों दलहन के दाम नहीं बदले गए हैं। कनाडा में नया फसल वर्ष अगस्त-जुलाई रहता है।
एएएफसी ने सूखे मटर का औसत भाव फसल वर्ष 2021-22 के लिए 600 कनाडाई डॉलर प्रति टन स्थिर रखा है। जबकि, फसल वर्ष 2022-23 के लिए 480 कनाडाई डॉलर प्रति टन रखा है। फसल वर्ष 2020-21 के लिए 340 कनाडाई डॉलर प्रति टन था।
एएएफसी की रिपोर्ट के मुताबिक कनाडा में फसल वर्ष 2022-23 के दौरान सूखे मटर का उत्पादन अनुमान 33 लाख टन, मसूर का उत्पादन 24.60 लाख टन और चने का उत्पादन 1.12 लाख टन आंका है। जबकि, फसल वर्ष 2021-22 के दौरान सूखे मटर का उत्पादन अनुमान 22.58 लाख टन, मसूर का उत्पादन 16.06 लाख टन और चने का उत्पादन 76 हजार टन आंका है।
Tuesday March 21,2023
मुंबई। देश भर के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में अधिक बारिश से इस साल की खरीफ मुंबई। देश भर के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में अधिक बारिश से इस साल की खरीफ . . . . .
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