वाशिंग्टन। अमरीकी कृषि विभाग (यूएसडीए) की अगस्त महीने की रिपोर्ट में वैश्विक तिलहन उत्पादन वर्ष 2022-23 में तकरीबन 30 लाख टन बढ़कर 64.60 करोड़ टन रहने का अनुमान है। सोयाबीन, रेपसीड और सनफ्लावर का उत्पादन बढ़ने से कॉटन सीड और मूंगफली के घटने वाले उत्पादन की भरपाई हो जाएगी। अंतिम स्टॉक चीन और अर्जेंटीना में सोयाबीन और आस्ट्रेलिया में रेपसीड का स्टॉक बड़ा रहने से बढ़ने की संभावना है। यूएसडीए ने सोयाबीन का औसत दाम वर्ष 2022-23 के लिए पांच सेंटस घटाकर 14.35 डॉलर प्रति बुशेल किया है। जबकि, यूएसडीए ने सोयाबीन का औसत दाम वर्ष 2021-22 के लिए पांच सेंटस कम कर 13.30 डॉलर प्रति बुशेल किया है।
यूएसडीए ने वर्ष 2022-23 में समूची दुनिया में सोयाबीन का उत्पादन 39.27 करोड़ टन रहने का अनुमान है। यह अनुमान बीते महीने 39.13 करोड़ टन था। वर्ष 2021-22 में 35.27 करोड़ टन सोयाबीन का उत्पादन रहने का अनुमान जताया है। जबकि वर्ष 2020-21 में समूची दुनिया में सोयाबीन का उत्पादन अनुमान 36.84 करोड़ टन था। वर्ष 2022-23 में अमरीका में सोयाबीन उत्पादन अनुमान 12.33 करोड़ टन आंका है जो वर्ष 2021-22 में 12.07 करोड़ टन रहा। वर्ष 2020-21 में यह 11.47 करोड़ टन था। ब्राजील में वर्ष 2022-23 में सोयाबीन उत्पादन 14.90 करोड़ टन रहने का अनुमान है जो वर्ष 2021-22 में 12.60 करोड़ टन रहा। जबकि, वर्ष 2020-21 में यह 13.95 करोड़ टन था।
अर्जेंटीना में सोयाबीन का उत्पादन वर्ष 2022-23 में सोयाबीन उत्पादन 5.10 करोड़ टन रहने का अनुमान है जो वर्ष 2021-22 में 4.40 करोड़ टन रहा। जबकि, वर्ष 2020-21 में यह 4.62 करोड़ टन था। चीन में सोयाबीन का उत्पादन वर्ष 2022-23 में 1.84 करोड़ टन और वर्ष 2021-22 में 1.64 करोड़ टन रहने का अनुमान है। चीन में वर्ष 2020-21 में सोयाबीन का उत्पादन 1.96 करोड़ टन रहा। यूएसडीए का कहना है कि वर्ष 2022-23 में चीन का सोयाबीन आयात 9.80 करोड़ टन रहने की संभावना है। यह आयात वर्ष 2021-22 में 9 करोड़ टन रहने के आसार हैं।
यूएसडीए ने अपनी रिपोर्ट में वर्ष 2022-23 में ब्राजील का सोयाबीन निर्यात वर्ष 2021-22 के आठ करोड़ टन की तुलना में 8.90 करोड़ टन रहने का अनुमान जताया है। अमरीका का सोयाबीन निर्यात अनुमान वर्ष 2022-23 में 5.86 करोड़ टन रहने के आसार है जबकि वर्ष 2021-22 में यह 5.87 करोड़ टन रहने की संभावना है। अर्जेंटीना का 2022-23 में सोयाबीन निर्यात 43 लाख टन रहने की संभावना है। यह वर्ष 2021-22 में 22.50 लाख टन रहने का अनुमान है। पेरुग्वे का 2022-23 में सोयाबीन निर्यात 65 लाख टन रहने की संभावना है। यह वर्ष 2021-22 में 29 लाख टन रहा।
अमरीकी कृषि विभाग के मुताबिक भारत में वर्ष 2022-23 में सोयाबीन का उत्पादन 115 लाख टन रहने का अनुमान जताया है। यह उत्पादन वर्ष 2021-22 में 119 लाख टन और वर्ष 2020-21 में भी 104.50 लाख टन रहा। भारत में वर्ष 2022-23 में 100 लाख टन सोयाबीन क्रश होने का अनुमान है जो वर्ष 2021-22 में 95 लाख टन रहने के आसार हैं। जबकि, वर्ष 2020-21 में यह 95 लाख टन रहा।
समूची दुनिया में वर्ष 2022-23 में सोयाबीन का अंतिम स्टॉक 10.14 करोड़ टन रहने का अनुमान है। बीते महीने यह अनुमान 9.96 करोड़ टन था। सोयाबीन का अंतिम स्टॉक वर्ष 2021-22 में 8.97 करोड़ टन रहने का अनुमान है। वर्ष 2020-21 में दुनिया में सोयाबीन का अंतिम स्टॉक 9.98 करोड़ टन रहा। (मोलतोल ब्यूरो; +91-75974 64665)
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सोया ऑयल की टैरिफ वैल्यू को अगले पखवाड़े के लिए खासा बढ़ाया है। जबकि, पाम ऑयल की टैरिफ वैल्यू में मामूली परिवर्तन किया गया है।
तेल
29 जुलाई
12 अगस्त
बदलाव
क्रूड पाम ऑयल
1067
1035
-32
आरबीडी पाम ऑयल
1080
1082
2
अन्य पाम तेल
1074
1059
-15
क्रूड पामोलिन
1087
5
आरबीडी पामोलिन
1085
1090
अन्य पामोलिन
1084
1089
क्रूड सोया ऑयल
1328
1593
265
(मोलतोल ब्यूरो; +91-75974 64665)
मुंबई। देश में वनस्पति तेलों का आयात तेल वर्ष 2021-22 (नवंबर-अक्टूबर) के पहले नौ महीनों नवंबर 2021 से जुलाई 2022 में 3.3 फीसदी बढ़ा। जुलाई में वनस्पति तेलों का आयात 1214353 टन रहा जो जुलाई 2021 में 980624 टन था। जबकि, जुलाई 2022 में हुए आयात में खाद्य तेल1205284 टन और अखाद्य तेल 9069 टन था। इस तरह जुलाई में आयात 24 फीसदी बढ़ा। चालू तेल वर्ष के पहले नौ महीनों नवंबर-जुलाई में वनस्पति तेलों का कुल आयात 9974993 टन रहा जो बीते वर्ष समान महीनों में 9654636 टन था। इस तरह यह आयात 3.3 फीसदी बढ़ा। यह जानकारी साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने दी।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले दो महीनों में खाद्य तेलों के दाम तेजी से फिसले हैं जिसकी वजह से भी आयात बढ़ा है। बीते 8 अगस्त 2022 तक पाम ऑयल का भाव 625 डॉलर, सनफ्लावर ऑयल का 450 डॉलर और सोयाबीन ऑयल का 370 डॉलर प्रति टन घटा है। घरेलू बाजार में भी आरबीडी पामोलिन का थोक भाव 25 हजार रुपए, रिफाइंड सोयाबीन ऑयल का 24 हजार रुपए और सनफ्लावर ऑयल का 20 हजार रुपए प्रति टन फिसला है।
पाम तेल का आयात मुख्य रुप से इंडोनेशिया और मलेशिया से हुआ। नंवबर 2021 से जुलाई 2022 के दौरान मलेशिया से सीपीओ का आयात 2214471 टन और आरबीडी पामोलिन का आयात 361606 टन हुआ। इंडोनेशिया से सीपीओ का आयात 836877 टन और आरबीडी पामोलिन का आयात 773890 टन रहा। क्रूड सोयाबीन डिगम्ड ऑयल का आयात अर्जेंटीना से 2072571 टन, ब्राजील से 885185 टन और अमरीका से 159815 टन रहा। क्रूड सनफ्लावर ऑयल का आयात नवंबर 2021 से जुलाई 2022 के दौरान यूक्रेन से 842956 टन हुआ। हालांकि, रुस-यूक्रेन के बीच जंग चलने से यह सप्लाई मार्च 2022 से रुकी हुई है। जुलाई में भारत ने 1.55 लाख टन सनफ्लावर ऑयल खरीदा जिसमें से रुस से 50336 टन और अर्जेंटीना से 91627 टन आयात हुआ।
एसईए का कहना है कि देश के विभिन्न बंदरगाहों पर खाद्य तेलों का स्टॉक 1 अगस्त 2022 को 5.95 लाख टन (सीपीओ 1.46 लाख टन, आरबीडी पामोलिन 48 हजार टन, डिगम्ड सोयाबीन ऑयल 2.99 लाख टन, क्रूड सनफ्लावर ऑयल 1.02 लाख टन था जबकि पाइप लाइन में 17.09 लाख टन तेल है। इस तरह कुल स्टॉक 23.04 लाख टन है। यह स्टॉक 1 जुलाई 2022 को 22.56 लाख टन था अधिक है। जो 48 हजार टन अधिक है।
जुलाई 2022 में रिफाइंड ऑयल एवं क्रूड ऑयल का आयात रेश्यो 4:96 रहा जो जून 2022 में 8:92 था। जबकि, नवंबर 2021 से जुलाई 2022 में रिफाइंड ऑयल एवं क्रूड ऑयल का आयात रेश्यो 12:88 रहा जो नवंबर 2020 से जुलाई 2021 में 0.46:99.54 था।
जुलाई 2022 में पाम और सॉफ्ट ऑयल (सोयाबीन, सनफ्लावर ऑयल) का आयात रेश्यो 44:56 रहा जो जून 2022 में 63:37 था। जबकि, नवंबर 2021 से जुलाई 2022 में पाम और सॉफ्ट ऑयल का आयात रेश्यो 50:50 रहा जो नवंबर 2020 से जुलाई 2021 में 60:40 था।
नवंबर 2021 से जुलाई 2022 के दौरान पाम ऑयल का आयात नवंबर 2020 से जुलाई 2021 के आयात 5615029 टन से घटकर 4861122 टन रहा। जबकि, सॉफ्ट ऑयल का आयात 3755118 टन से बढ़कर 4834183 टन पहुंच गया। जुलाई में आयातित तेलों का औसत भाव डॉलर प्रति टन सीआईएफ इस तरह रहा : आरबीडी पामोलिन 1097 डॉलर, क्रूड पाम ऑयल 1120 डॉलर, क्रूड सोयाबीन ऑयल 1413 डॉलर, क्रूड सनफ्लावर ऑयल 1621 डॉलर, क्रूड रेपसीड ऑयल - डॉलर (प्रति डॉलर 79.59 रुपए)।
इंदौर। अक्टूबर 2022 से शुरू होने वाले नए तेल वर्ष के लिए सोयाबीन का कैरी फॉरवर्ड स्टॉक 27.72 लाख टन के रिकॉर्ड पर होगा क्योंकि किसानों, व्यापार और पेराई इकाइयों के पास अभी भी पिछले साल के उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा रखा है।
सोयाबीन ऑयल प्रोसेसर्स एसोसिएशन (सोपा) ने अपने नवीनतम आपूर्ति और मांग अनुमानों में, किसानों, व्यापार और पेराई इकाइयों के साथ सोयाबीन का स्टॉक 40.52 लाख टन आंका है। पिछले कुछ महीनों के रुझानों के आधार पर, अगस्त और सितंबर के दौरान 12-13 लाख टन क्रश होने पर, अक्टूबर की शुरुआत में कैरी फॉरवर्ड स्टॉक लगभग 27.72 लाख टन रहने की संभावना है। सोपा के कार्यकारी निदेशक डीएन पाठक ने कहा कि नए तेल वर्ष के लिए कैरी फॉरवर्ड स्टॉक 27.72 लाख टन रिकॉर्ड होगा।
व्यापार निकाय, मौजूदा बाजार की स्थिति, आयात और निर्यात पैटर्न को देखते हुए, सोयाबीन का आयात पहले के 3.5 लाख टन से बढ़ाकर 4.5 लाख टन कर दिया है। इसी तरह, सोयाबीन का निर्यात और सीधी खपत के आंकड़ों को क्रमशः 0.5 लाख टन से बढ़ाकर एक लाख टन और 3.5 लाख टन कर दिया गया है।
सोयाबीन की पेराई चालू तेल वर्ष के दौरान धीमी रही है, क्योंकि किसान और कारोबारी ऊंचे भावों की उम्मीद में इसे रोकना पसंद कर रहे हैं। अक्टूबर 2021 से जुलाई 2022 के अंत तक सोयाबीन की कुल पेराई 67.5 लाख टन थी - जो पिछले साल की समान अवधि के 87.5 लाख टन की तुलना में लगभग 23 प्रतिशत कम है। मासिक आधार पर सोयाबीन की पेराई - जो पिछले साल अप्रैल तक के स्तर से पीछे थी - पिछले तीन महीनों में बढ़ी है।
विश्व बाजार की तुलना में कम पेराई और ऊंचे भावों के परिणामस्वरूप सोयामील के निर्यात में अब तक बड़ी गिरावट देखी गई है। अक्टूबर-जुलाई की अवधि के लिए सोयामील का निर्यात केवल 5.86 लाख टन था, जो एक साल पहले की समान अवधि में 18.98 लाख से 69 प्रतिशत कम है।
तदनुसार, सोपा को उम्मीद है कि सोयाबीन मील का निर्यात लगभग 6.5 लाख टन होगा, जो पहले के 10 लाख टन के अनुमान से कम है। साथ ही, सोयामील आयात के अनुमान को पहले के अनुमानित 7 लाख टन से नीचे संशोधित कर 5.5 लाख टन कर दिया गया है। सोयामील का घरेलू उठाव 55 लाख टन रहने का अनुमान है, जो पहले के 54 लाख टन के अनुमान से अधिक है।
इस बीच, मौजूदा खरीफ सीजन में सोयाबीन की बुवाई समाप्त हो गई है और कृषि मंत्रालय ने 117.50 लाख हैक्टेयर क्षेत्र का अनुमान लगाया है यह एक साल पहले 115.10 लाख हैक्टेयर से अधिक है। कारोबारियों के मुताबिक सोयाबीन का उत्पादन बढ़ने की संभावना और बड़े कैरी फॉरवर्ड स्टॉक के साथ सितंबर के अंत में फसल शुरू होने पर इसके भावों पर दबाव पड़ने की संभावना है।
सोपा के मुताबिक 1 अक्टूबर 2021 से शुरु हुए नए मार्केटिंग वर्ष में सोयाबीन का ओपनिंग स्टॉक 1.83 लाख टन था जबकि उत्पादन 118.89 लाख टन हुआ। 4.5 लाख टन सोयाबीन का आयात हुआ। इस तरह कुल उपलब्धता 125.22 लाख टन की है। किसानों द्धारा बुवाई के लिए 13 लाख टन सोयाबीन रखने के बाद सीधे खपत, क्रशिंग और निर्यात के लिए 84.50 लाख टन उपलब्ध है। जबकि, कैरी फारवर्ड 27.72 लाख टन रहने का अनुमान है।
(मोलतोल ब्यूरो; +91-75974 64665)
अहमदाबाद। कमोडिटी एक्सचेंज एनसीडीईएक्स में बीते कारोबारी सप्ताह में कैस्टर सितंबर वायदा साप्ताहिक खुले भाव से 84 अंक की बढत के साथ 7250 रुपए पर बंद हुआ। कैस्टर ने पिछले सप्ताह 7364 रुपए का ऊपरी एवं 7094 रुपए का निचला स्तर टेस्ट किया।
तकनीकी विश्लेषक कमलेश शाह का कहना है कि कैस्टर के लिए इस सप्ताह 7380 और 7510 रेजिस्टेंस हैं। जबकि, 7110 और 6960 अहम सपोर्ट का काम करेंगे।
मुंबई। खाद्य तेल क्षेत्र वह है जो वर्तमान में खुश है क्योंकि किसानों ने इस साल तिलहन फसलों को बड़े पैमाने पर चुना है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में, दक्षिण-पूर्व एशिया में पाम तेल की कीमतों में वृद्धि हुई है और सोयाबीन का उत्पादन दक्षिण अमरीका में सूखे मौसम से प्रभावित हुआ है। रूस-यूक्रेन युद्ध उपभोक्ताओं के लिए एक और झटका रहा क्योंकि दोनों देशों से सनफ्लावर ऑयल की आपूर्ति प्रभावित हुई।
जबकि भारतीय किसानों ने मोटे अनाज जैसी अन्य फसलों से तिलहन - विशेष रूप से सोयाबीन, सूरजमुखी और मूंगफली - की ओर रुख किया है। किसानों के लिए एक बड़ा सवाल यह है कि जब फसलों की कटाई की जाएगी तो कीमतें कैसी रहेगी क्योंकि वैश्विक बाजार में पाम तेल के भाव काफी नीचे आ चुके हैं। पाम तेल उत्पादन का मुख्य मौसम होने के कारण व्यापारियों और विशेषज्ञों को आगे मंदी का रुख दिखाई दे रहा है और इंडोनेशिया जो कि सबसे बड़ा पाम तेल उत्पादक है, अपने स्टॉक को कम करने में लगा है।
इसके अलावा, केंद्र ने जून से दो साल के लिए टैरिफ रेट कोटा (टीआरक्यू) के तहत सोयाबीन और सूरजमुखी तेल के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दी है। कुल 40 लाख टन यानी हर साल 20 लाख टन तेल आयात किया जा सकता है जो किसानों के रिटर्न को और प्रभावित कर सकता है। अनुकूल मानसून खरीफ सीजन में उत्पादकों को तिलहन कवरेज बढ़ाने में मदद कर रहा है। वास्तव में, तिलहन क्षेत्र का अब कुल क्षेत्रफल के पिछले वर्ष के 194 लाख हैक्टेयर के आंकड़े को पार करने की उम्मीद है। 5 अगस्त तक खरीफ फसलों के रकबे पर साप्ताहिक आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, तिलहन फसलों का रकबा 174.79 लाख हैक्टेयर था, जो पिछले साल के समान समय के 173.82 लाख हैक्टेयर से लगभग एक प्रतिशत अधिक है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी ने हाल ही में कहा था कि आने वाले दिनों में तिलहन फसलों के तहत बुवाई क्षेत्र बढ़ने की संभावना है। उन्होंने कहा हमें यह देखकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि यह पिछले साल के 194 लाख हैक्टेयर के स्तर को पार कर गया है। एसईए के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता ने बताया कि बाजार में तिलहन की अच्छी कीमत और अच्छे मानसून की वजह से सोयाबीन सहित खरीफ तिलहन के रकबे में वृद्धि होगी।
सोयाबीन का रकबा 3 अगस्त तक 117.51 लाख हक्टेयर था, जो एक साल पहले इसी अवधि में 115.10 लाख हैक्टेयर था। इसके साथ ही सोयाबीन की खरीफ बुवाई में जुलाई अंत तक 2.8 लाख हैक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। मेहता ने कहा कि सोयाबीन का रकबा और बढ़ने की संभावना है क्योंकि किसानों को इसकी अच्छी कीमत मिल रही है।
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के कार्यकारी निदेशक डीएन पाठक ने कहा कि अभी सोयाबीन की संभावनाएं बहुत अच्छी हैं। कोई शिकायत नहीं है और क्षेत्र पिछले साल की तुलना में समान या थोड़ा अधिक होगा, लेकिन फसल के आकार को निर्धारित करना जल्दबाजी होगी। सोपा के अनुसार सोयाबीन का रकबा लगभग 120 लाख हैक्टेयर होगा।
सोपा के अनुसार, उच्च रकबे वाले राज्यों में महाराष्ट्र 47.12 लाख हैक्टेयर (पिछले वर्ष की समान अवधि में 44.49 लाख हैक्टेयर), राजस्थान 11.32 लाख हैक्टेयर (10.3 लाख हैक्टेयर) और कर्नाटक 4.13 लाख हैक्टेयर (3.78 लाख हैक्टेयर) शामिल हैं। सबसे बड़े उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश में, रकबा 50.21लाख हैक्टेयर (55.68 लाख हैक्टेयर) पर कम देखा गया है।
हालांकि, महाराष्ट्र में सोयाबीन की खेती को बड़ा झटका लगा है, हालांकि राज्य में खरीफ की बुवाई ने रफ्तार पकड़ ली है। मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्र प्रमुख सोया उत्पादक हैं। लेकिन क्षेत्र में भारी मानसून की बारिश ने खेती और कई जगहों पर प्रभावित किया है, और किसानों को दूसरी और तीसरी बुवाई के लिए जाना पड़ा है। किसानों और विशेषज्ञों का कहना है कि महाराष्ट्र में सोयाबीन का कुल उत्पादन प्रभावित होगा। राज्य के 34 जिलों में से 21 जिलों में इस मानसून की अधिक वर्षा हुई। इनमें से अधिकांश जिले मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्रों में हैं। पाठक ने कहा कि हालांकि महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में अधिक बारिश से सोयाबीन की फसल प्रभावित होने की खबरें हैं, लेकिन इसका कोई असर होने की संभावना नहीं है।
सूरजमुखी का कुल रकबा 5 अगस्त तक बढ़कर 1.70 लाख हैक्टेयर पहुंच गया है, जो पिछले साल की समान अवधि में 1.32 लाख हैक्टेयर था। कर्नाटक ने सूरजमुखी के तहत क्षेत्र में यह वृद्धि की है। कर्नाटक में, एक साल पहले इसी अवधि के 95 हजार से बढ़कर 1.40 लाख हैक्टेयर पहुंच गया है। बेहतर बीज की कमी की वजह से सूरजमुखी के क्षेत्र में सीमित बढ़ोतरी हुई है।
5 अगस्त तक मूंगफली का रकबा 41.09 लाख हैक्टेयर था, जो एक साल पहले 44.39 लाख हैक्टेयर था, यानी 3.3 लाख हैक्टेयर की गिरावट आई है। बुवाई के आंकड़ों का हवाला देते हुए मेहता ने कहा कि निश्चित रूप से सोयाबीन को बढ़ावा मिल रहा है, लेकिन मूंगफली पिछड़ रही है। हालांकि, एक स्पष्ट तस्वीर पाने के लिए अगस्त के मध्य तक खरीफ की बुवाई की साप्ताहिक संख्या को देखना होगा।
गुजरात का तीन साल का औसत तिलहन रकबा 28 लाख हैक्टेयर है, जिसके मुकाबले इस साल खेती 20.7 लाख हैक्टेयर (पिछले साल 22.97 लाख हैक्टेयर ) रही, जो मुख्य रूप से कपास की ओर बढ़ने से प्रभावित हुई।
तीन खरीफ तिलहन फसलों- मूंगफली, तिल और सोयाबीन में से मूंगफली और तिल की बुवाई प्रभावित हुई जबकि सोयाबीन की बुवाई स्थिर रही। लेकिन तमिलनाडु की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल दक्षिणी राज्य में किसान रागी या मक्का के बजाय मूंगफली की खेती करने लगे हैं।
गुजरात कृषि विभाग के मुताबिक राज्य में, मूंगफली की बुवाई 16.72 लाख हैक्टेयर (18.93 लाख हैक्टेयर) हुई है, जो एक साल पहले की समान अवधि की तुलना में 12 प्रतिशत कम है, और तिल का रकबा लगभग 40 प्रतिशत घटकर 47063 हैक्टेयर रह गया है। लेकिन सोयाबीन का रकबा 2.11 लाख हैक्टेयर (2.19 लाख हैक्टेयर) रहा।
राजकोट स्थित खाद्य तेलों के विशेषज्ञ समीर शाह ने कहा कि कपास और सोयाबीन के आकर्षक विकल्प के कारण व्यापार और किसान समूहों ने मूंगफली की बुवाई में बड़ी गिरावट का अनुमान लगाया था। बुवाई अभी जारी है और मानसून समाप्त होने के बाद एक स्पष्ट तस्वीर दिखाई देगी। उन्होंने कहा कि मूंगफली और तिल के किसानों ने पिछले साल की तरह ऊंचे भाव की उम्मीद में कपास की ओर रुख किया है।
एसईए के मेहता ने तिलहन की बुवाई का हवाला देते हुए कैस्टर की बुवाई को ध्यान में नहीं रखा क्योंकि इसकी सामान्य बुवाई 15 जुलाई के आसपास होती है। अगस्त के अंत तक संख्या मिलने पर हमें एक सही तस्वीर मिल जाएगी। कैस्टर का रकबा 5 अगस्त तक 3.08 लाख हैक्टेयर था, जबकि 2021 की इसी अवधि के दौरान 1.48 लाख हैक्टेयर यानी 1.6 लाख हैक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। मौजूदा स्थिति को देखते हुए उन्होंने कहा कि कुल बुवाई संख्या पिछले साल की तुलना में 5 प्रतिशत अधिक हो सकती है। उन्होंने कहा कि खरीफ 2021 के दौरान रिकॉर्ड तिलहन फसलों का उत्पादन हुआ।
सरकार देश में खाद्य तेलों की मांग और आपूर्ति के अंतर को देखते हुए देश में तिलहन की खेती के तहत क्षेत्र बढ़ाने और फसलों की उपज में सुधार पर अधिक जोर दे रही है। इस साल अप्रैल में कृषि पर राष्ट्रीय सम्मेलन (खरीफ अभियान 2022) ने इस मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया था। सरकार ने खरीफ सीजन के लिए 268.9 लाख टन तिलहन और रबी के लिए 144.5 लाख टन निर्धारित किया था।
कुआलालम्पुर। मलेशिया ने गुरुवार को कहा कि वह मुख्य सप्लायर इंडोनेशिया से संभावित अनिश्चित आपूर्ति के मद्देनजर भारत को अपनी पाम तेल की मांग को पूरा करने में मदद करने के लिए तैयार है।
मलेशिया के बागान उद्योग और कमोडिटी मंत्री जुरैदा कमरुद्दीन ने इंडियन वेजिटेबल ऑयल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन के आंकड़ों का हवाला देते हुए एक बयान में कहा कि भारत को अगले छह महीनों के लिए लगभग आठ लाख टन प्रति माह पाम ऑयल की जरुरत रहेगी।
मुंबई। आपूर्ति परिदृश्य बढ़ने और बड़े उत्पादक इंडोनेशिया से बिकवाली के दबाव के कारण गुरुवार को शुरुआती कारोबार में मलेशियाई पाम तेल वायदा कीमतों में 3 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई।
बुर्सा मलेशिया डेरिवेटिव्स एक्सचेंज में अक्टूबर डिलीवरी के लिए बेंचमार्क पाम तेल वायदा शुरुआती कारोबार के दौरान 76 रिंगिट या 1.97 प्रतिशत गिरकर 3,788 रिंगिट ($850.47) प्रति टन आ गया, जो चार सत्रों में एक तिहाई के लिए नीचे था।
बुनियादी बातें* सीजीएस-सीआईएमबी रिसर्च में प्लांटेशन रिसर्च के क्षेत्रीय प्रमुख आइवी एनजी ने एक नोट में कहा है कि जुलाई के अंत में मलेशिया का पाम ऑयल स्टॉक पिछले महीने की तुलना में 9.8 प्रतिशत बढ़कर 18.2 लाख टन हो गया।
* युद्धकाल में यूक्रेनी बंदरगाह छोड़ने वाला पहला अनाज जहाज बुधवार को बोस्फोरस जलडमरूमध्य से होकर लेबनान के रास्ते में एक डिलीवरी के लिए गुजरा। उम्मीद है कि वैश्विक खाद्य संकट को कम करने में मदद करने के लिए यह शुरुआत है।
* शिपमेंट ब्लैक सी के लिए आशावादी है। रेफिनिटिव कमोडिटीज रिसर्च ने बुधवार देर रात एक नोट में कहा कि ब्लैक सी का योगदान वैश्विक सूरजमुखी तेल उत्पादन का 60 प्रतिशत और निर्यात का 76 प्रतिशत हिस्सा है।
* कम देय निर्यात शुल्क और इंडोनेशिया में निर्यात के लिए ज्यादा मात्रा ने इसके पाम तेल को मलेशियाई पाम तेल की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्धी बना दिया है।
* डालियान का सबसे सक्रिय सोया तेल वायदा 3.3 प्रतिशत गिर गया, जबकि इसका पाम तेल वायदा 4.1 प्रतिशत फिसल गया। शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड में सोया तेल की कीमतें 1.2 फीसदी नीचे थीं।
* रॉयटर्स के तकनीकी विश्लेषक वांग ताओ काा कहना है कि पाम तेल 3,717 रिंगिट प्रति टन पर सपोर्ट टेस्ट कर सकता है। नीचे एक ब्रेक 3,489-3,598 रिंगिट रेंज की ओर रास्ता खोल सकता है।
मुंबई। जुलाई में भारत का सोया तेल आयात एक महीने पहले की तुलना में दोगुने से अधिक रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया, क्योंकि रिफाइनर ने सरकार के कदम का फायदा उठाने के लिए खरीदारी तेज कर दी, ताकि वनस्पति तेल के शुल्क मुक्त आयात से भावों को नीचे लाया जा सके।
व्यापारिक सूत्रों ने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े खाद्य तेल आयातक भारत द्वारा सोया तेल की अधिक खरीद से अमरीकी सोया तेल की कीमतों को सपोर्ट मिलेगा, लेकिन भारतीय खरीद में प्रतिद्वंद्वी पाम तेल की हिस्सेदारी कम हो जाएगी और मलेशियाई और इंडोनेशियाई विक्रेताओं को बाजार हिस्सेदारी हासिल करने के लिए छूट की पेशकश करने के लिए मजबूर किया जाएगा।
वैश्विक व्यापारिक फर्मों के पांच डीलरों के औसत अनुमान के अनुसार, जुलाई में देश का सोया तेल आयात एक महीने पहले के 113 फीसदी बढ़कर रिकॉर्ड 4.93 लाख टन पहुंच गया है, जो भारत के सोया तेल आयात का 80 फीसदी से अधिक हिस्सा है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक बी.वी. मेहता ने कहा सरकार द्वारा आयात के लिए टैरिफ-दर कोटा आवंटित किए जाने के बाद रिफाइनर सोया तेल खरीदने के लिए दौड़ पड़े।
मई के अंत में भारत ने स्थानीय खाद्य तेल की कीमतों पर नियंत्रण रखने के प्रयासों के तहत, 31 मार्च को समाप्त होने वाले चालू और अगले वित्तीय वर्ष के लिए प्रत्येक सोया तेल और सूरजमुखी तेल के 20 लाख टन के शुल्क-मुक्त आयात की अनुमति दी है।
सनविन ग्रुप के मुख्य कार्यकारी संदीप बाजोरिया का कहना है कि जून के अंत तक, पाम तेल पर सोया तेल का प्रीमियम 150 डॉलर प्रति टन से कम था, लेकिन चूंकि पाम तेल पर 5.5 फीसदी आयात कर लगता है, इसलिए भारतीय खरीदारों के लिए पाम तेल प्रभावी रूप से अधिक महंगा था।
उन्होंने कहा कि तब इंडोनेशिया के निर्यात प्रतिबंधों के कारण पाम तेल की आपूर्ति भी सीमित थी। सोया तेल खरीदना तब आसान और लाभदायक भी था। बता दें कि सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया अगस्त के मध्य में जुलाई के लिए अपने आयात अनुमान को प्रकाशित करेगा।
भारत ने आयात करों के बिना 20 लाख टन सूरजमुखी तेल के आयात की अनुमति दी है, लेकिन मुख्य निर्यातक यूक्रेन से शिपमेंट में व्यवधान के कारण सन ऑयल की उपलब्धता सीमित है। आने वाले महीनों में सोया तेल का आयात बढ़ेगा और भारत 31 अक्टूबर को समाप्त होने वाले मार्केटिंग वर्ष में पिछले साल के 28.7 लाख टन की तुलना में रिकॉर्ड 45 लाख टन सोया तेल का आयात कर सकता है। कारोबारियों का कहना है कि आमतौर पर भारत के कुल वनस्पति तेल आयात में सोया तेल का पांचवां हिस्सा होता है, लेकिन इस साल इसका हिस्सा बढ़कर एक तिहाई हो सकता है।
भारत परंपरागत रूप से अर्जेंटीना और ब्राजील से सोया तेल खरीदता है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में अमरीका, रूस और टर्की से भी खरीदारी की है।
जयपुर। देश में सरसों की क्रशिंग जुलाई महीने में सात लाख टन रही। जबकि, जून में दस लाख टन सरसों की क्रशिंग हुई थी। देश भर की मंडियों में जुलाई महीने में सरसों की आवक 5.50 लाख टन रही। देश में 31 जुलाई 2022 को किसानों के पास सरसों का कुल स्टॉक 40.25 लाख टन था। जबकि, प्रोसेसर्स और स्टॉकिस्टों के पास सरसों का स्टॉक 7.75 लाख टन था। यह जानकारी मरुधर ट्रेडिंग कंपनी, जयपुर के प्रमुख अनिल चतर ने दी।
उन्होंने बताया कि जुलाई में सरसों की आवक 5.50 लाख टन रही जबकि मार्च से जुलाई तक कुल आवक 67.75 लाख टन रही है। जुलाई में हुई आवक में उत्तर प्रदेश में 95 हजार टन, राजस्थान में 2.60 लाख टन, पंजाब/हरियाणा 50 हजार टन, गुजरात 15 हजार टन, मध्य प्रदेश 40 हजार टन, पश्चिम बंगाल, बिहार एवं अन्य राज्यों में 90 हजार टन सरसों की आवक हुई। चालू सीजन में सरसों की कुल उपलब्धता 111 लाख टन की है। देश में मार्च से जुलाई तक कुल 60 लाख टन सरसों की क्रशिंग हुई है। मार्च में 16 लाख टन, अप्रैल में 15 लाख टन, मई में 12 लाख टन, जून में 10 लाख टन और जुलाई में सात लाख टन सरसों की पेराई हुई।
बता दें कि सरसों की बोआई सितंबर-अक्टूबर में शुरु होती है एवं नई सरसों की आवक फरवरी से शुरु हो जाती है। मार्च से इसकी आवक में तेजी आती है लेकिन जून से ऑफ सीजन शुरु हो जाने से इसकी आवक सुस्त पड़ जाती है। देश में कुल पैदा होने वाली तिलहन में सरसों की हिस्सेदारी 25 फीसदी होती है। फसल वर्ष 2022-23 में उत्तर प्रदेश में 15 लाख टन, राजस्थान में 51 लाख टन, पंजाब/हरियाणा में 11.50 लाख टन, गुजरात में 6.50 लाख टन, मध्य प्रदेश में 12.50 लाख टन और पश्चिम बंगाल, पूर्वी भारत एवं अन्य राज्यों में 14.50 लाख टन सरसों पैदा होने का अनुमान है। (मोलतोल ब्यूरो; +91-75974 64665)
Tuesday March 21,2023
वाशिंग्टन। अमरीकी कृषि विभाग (यूएसडीए) की अगस्त महीने की रिपोर्ट में वैश्व वाशिंग्टन। अमरीकी कृषि विभाग (यूएसडीए) की अगस्त महीने की रिपोर्ट में वैश्व . . . . .
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