हम निवेश के लिए हमेशा ही उत्साहित रहते हैं और हमेशा ही अपनी जमा पूंजी को, मेहनत की गाढ़ी कमाई को किसी और के कहने से दांव पर लगाने के लिए तैयार रहते हैं। हम अपनी ही बचत के लिए अपना दिमाग खर्च करने की बिल्कुल कोशिश नहीं करते हैं। बस किसी एक्सपर्ट ने क्या बता दिया, वह पत्थर की लकीर हो गया। अगर आप भी ऐसा करते हैं, तो ठहरिए, सोचिए, समझिए, ये जो पैसा आप किसी और के कहने पर, जो कि टीवी या रेडियो से बोल रहा है, वह तो इतना बोलकर अंतर्ध्यान हो जाएगा, अगर आपको घाटा हुआ तो आप कुछ नहीं कर पाएंगे, केवल अपनी किस्मत को दोष ही देंगे।
ऐसे कभी भी अपने निवेश न करें, निवेश करने के लिए कोई बहुत बड़ी पढ़ाई लिखाई नहीं चाहिए होती है, केवल थोड़ी सी समझ भी बहुत होती है। कुछ बुनियादी बातें यहां बताना चाहता हूं :
म्युचुअल फंड में निवेश जब भी करें, यह नियम जरूर पालें :6 माह से 2 साल के लिए – डेब्ट फंड में ही निवेश करें दो साल से अधिक के लिए – अपनी रिस्क देख लें और उचित प्रकार से निवेश करें। हमेशा ही लंबी अवधि याने कि 10 वर्ष या अधिक के लिए निवेश करें, तभी अच्छा खासा फायदा होगा, कम से कम आप १२ प्रतिशत प्रतिवर्ष की ब्याज दर का लाभ मानकर चलें। मेरे खुद के कई निवेश हैं जो कि 20 फीसदी से ज्यादा के लाभ दे रहे हैं। बस हमें लंबी अवधि के लिए सोचना है और उन निवेशों को हाथ नहीं लगाना है।
शेयर बाजार में निवेश कब करें : शेयर बाजार में भी निवेश कभी भी कर सकते हैं। बस यह ध्यान रखें कि आपको शेयर बाजार के निवेश के बारे में थोड़ा बहुत पता हो। लंबी अवधि के निवेशकों को बहुत ज्यादा एक्सपर्ट होने की भी जरूरत नहीं है। यहां भी सबसे बड़ी समस्या यह है कि जो टीवी पर कहा जाता है, लोग उसे ही सुनकर फैसला ले लेते हैं। उस समय वे किसी एक्सपर्ट की सलाह को ही सर्वोपरि मान लेते हैं, हमेशा इस बात का ध्यान रखिए, कि टीवी पर उनको सारी चीजें बेचनी पड़ती हैं, मैंने ऐसे बहुत से लोग देखे हैं जो कि एक्सपर्ट के कहे अनुसार खरीद तो लेते हैं, लेकिन उनको घाटा उठाना पड़ता है।
हमेशा ही खुद पढ़ें और समझें तभी निवेश करें, अगर निवेश खुद से करने जा रहे हैं, तो हमेशा ही बड़ी कंपनियों में निवेश करें, न कि छोटी कंपनियों में जिनका नाम आपने न सुना है और न ही आपको उनके व्यापार और प्रबंधन के बारे में पता है और उन कंपनियों के प्रबंधन और व्यापार की चर्चा कहीं भी नहीं होती है, आपका अपना पैसा है, आपको बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। अगर किसी ऐसी कंपनी में निवेश करना भी चाहते हैं तो पहले खुद उसके बारे में पढ़ लें और फिर निवेश करें। जल्दी पैसा कमाना आपका उद्देश्य नहीं होना चाहिए, आपको हमेशा ही याद रखना चाहिए कि आप यहां रातों रात अमीर बनने नहीं आए हैं, बल्कि यहां बैंक से ज्यादा ब्याज दर कमाने के लिए आए हैं। शेयर बाजार में उतार चढ़ाव आते रहते हैं और जब ज्यादा कमाना है तो आपको रिस्क भी ज्यादा ही लेनी होगी, इसलिए अपनी निगाहें शेयर बाजार पर सतत रखें, क्योंकि कुछ बड़ी कंपनियां भी अच्छा नहीं कर पाती हैं और डूब जाती हैं, तो ऐसा न हो कि आप अच्छी कंपनी में निवेश करके सो जाएं, नहीं तो आपकी गाढ़ी कमाई का पैसा डूब जाएगा।
(मोलतोल ब्यूरो; +91-75974 64665)
लेखिका : डॉ अर्चना
पोंजी स्कीम इस शब्द से पाठक जन अपरिचित नहीं होंगे फिर भी विषयारंभ से पूर्व थोड़ी चर्चा कर लेना ज़रूरी हैं। पोंजी स्कीम वह निवेश योजना है जो हवाई किले की तरह अवास्तविक होती हैI इसमें निवेशक को बाज़ार में प्रचलित मुनाफे की दर से कहीं अधिक दर से मुनाफा दिए जाने का भरोसा दिया जाता है और प्रारंभिक स्तर पर निवेश करने वालो को यह निवेश लाभ देता भी है, बस यही लाभ निवेशकों को खींचता हैं और उसके बाद योजना के संचालक योजना में कुछ फेर- बदल करके निवेश लौटाने की अवधि बढ़ाने लगते हैं और अपना मुनाफा इसमें से निकालने लगते हैं।
कुछ इसी तर्ज़ पर मल्टी स्टेट क्रेडिट कोआपरेटिव सोसायटी काम करती है। इन सोसायटियों का गठन तो सदस्यों की भलाई, कृषि के बिकाऊ एवं ऐसे ही दावों के साथ किया जाता है लेकिन गठन के कुछ समय उपरांत ही इनके संचालको के लिए ऐसे सोसायटी धन कमाने का जरिया बन जाती है और तब तक काम करती ही रहती है जब तक नए निवेशक इसमें जुड़ते चले जाते है और पुराने निवेशकों का अपना निवेश अंतिम रूप से बाहर नहीं निकाला जाता है। अब ज़रा किसी प्रसिद्ध मल्टी स्टेट क्रेडिट कोआपरेटिव की योजनाओं पर एक दृष्टि डालिए, दिए गए सभी तथ्य आप अपनी नज़दीकी मल्टी स्टेट क्रेडिट सोसायटी की शाखा में जाकर सत्यापित भी कर सकते है। ज़रूरत सिर्फ थोड़ी सी मेहनत ओर खुले दिमाग की है।
आकर्षक ब्याज दर जमा दी जाती है जो प्रचलित बैंक ब्याज दर से 6 फीसदी अधिक होती है वर्तमान में यह दर 12-13 फीसदी की दर से दी जा रही है। जमा करवाने वाले एजेंट /एडवाइजर को भारी कमीशन दिया जाता है। एक वर्ष की जमा अवधि पर यह कमीशन 4 फीसदी की दर से दिया जाता है एवं पांच वर्ष की अवधि जमा पर यह दर 20 फीसदी की दर से दी जाती है यानि अगर 1 लाख की जमा राशि 5 वर्ष हेतु दी जाए तो 20000 रुपए तो तुरंत एजेंट को कमीशन के रूप में दिए जाते हैं। यदि किसी संस्था को चलाने के खर्च का निर्वाह मात्र भी निकालना हो तो भी जमा राशि पर दिए गए ब्याज दर से क़र्ज़ पर लिए जाने वाले ब्याज की दर में 5 से 6 फीसदी का अंतर होना ज़रूरी है। जमा एवंथा कर्ज पर दिए गए और ली गई ब्याज दरों के अंतर को आप किसी भी बैंक शाखा में जा कर समझ सकते हैं।
अब आपके सामने ऐसा तथ्य लेकर आते है जो सामान्यत: जन साधारण को ज्ञात नहीं है लेकिन जिसको आप कभी भी सत्यापित कर सकते है यह तथ्य है :
ब्याज दर जिस पर मल्टी स्टेट कोआपरेटिव सोसायटी कर्ज उपलब्ध करवाती है यह दर है 24 फीसदी से 27 फीसदी प्रतिवर्ष जो कि किसी भी बैंक या प्रतिष्ठित एनबीएफसी द्धारा दिए जाने वाले ब्याज से दो गुणा या अधिक है। क्या यह तथ्य आप के गले उतर सकता है कि कोई व्यक्ति बाज़ार दर से दो गुणा दर पर ब्याज चुका कर ऋण लेगा? क्या यह मनुष्यों द्धारा किया जाने वाला सामान्य व्यवहार है? जब आपको ऋण लेना ही है और ऋण के लिए आपको कोई संपति, आस्ति या गारंटी भी देनी ही है तो वह कौन सी मज़बूरी है जिसकी वजह से आप बाज़ार में उपलब्ध सारे विकल्पों को ठोकर मार कर स्वेच्छा से दो गुणा ब्याज चुकाएंगे?
यह ऐसा सवाल है जिस पर वह कोई भी निवेशक नहीं सोचता, पूछता और ना ही सुनना चाहता है जिसने मूल धन 12-13 फीसदी के ब्याज लोभ में जमा करवाया था। यह वह सवाल भी है जिसे उन सभी एजेंटों का शोर भी दबाता है जो सोसायटी से भारी कमीशन प्राप्त करते हैं। इस सवाल को वे सभी मीडिया हाउस भी दबा देते हैं जो इस सोसायटी द्धारा दिए गए विज्ञापनों की आय से लाभान्वित होते हैं। तो फिर सवाल उठता है कि यदि कोई भी सामान्य व्यक्ति इतनी ऊंची दर पर ब्याज नहीं चुकाएगा तो यह ऋण कौन लेगा?
वस्तुतः यह ऋण इतने ऊंचे ब्याज दर पर ऑफर किया जाता है कि कोई भी इसे लेने के लिए नहीं आता। यह ऋण वास्तव में दिया जाता है सोसायटी के उच्च पदस्थ अधिकारियों द्धारा नियंत्रित प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों को या फिर ऐसे A.O.P. को जो किसी भी विधि द्धारा संचालित नहीं होते।
ऋण देने की शर्तों में ही यह प्रावधान प्राय: होता है कि ऋण चुकाने कि पहली किश्त एक वर्ष या अधिक समय बाद दी जाएगी और यह एक वर्ष कभी खत्म नहीं होता। एक वर्ष होने पर ऋण लौटाने की शर्तें एवं समय की अवधि फिर से बढ़ा दी जाती है और फिर कभी ऐसा नहीं होता कि वास्तविक वसूली की नौबत आए।
जहां ऋण देने वाली अन्य संस्थायें बैंक एवं एनबीएफसी या तो रिज़र्व बैंक के नियंत्रण में रह कर कार्य करती है या उन पर बाज़ार का नियंत्रण ही होता है। इन क्रेडिट कोआपरेटिव सोसायटी पर ना ही तो किसी नियामक का नियंत्रण है ओर ना ही बाज़ार का ही विशेष नियंत्रण है। वस्तुत: वर्तमान कानूनों के अनुसार तो इनकी गतिविधियां यदि अपने सदस्यों के हितो को पहुंचाने वाली हो जाएं तो कोई न्यायालय अथवा केंद्र सरकार भी वर्तमान क़ानूनी ढांचे के भीतर रहकर इन के विरुद्ध सरलता पूर्वक कार्यवाही नहीं कर सकती।
वर्तमान विधि के प्रावधानों एवं व्यापारिक बुद्धि के सभी मानदंडों का सोसायटी खुल कर उल्लघंन करती है जैसे कि रिज़र्व बैंक का यह स्पष्ट निर्देश सभी बैंको को है कि वे अपनी जमा के 65 फीसदी से अधिक भाग का ऋण बाज़ार में न द।, ऐसा इसलिए कि यदि जमाकर्ता अपनी जमा निकलवाने बैंक में आए तो बैंक नकदी की कमी से ना जूझे। इसी प्रकार एनबीएफसी पर भी रिज़र्व बैंक का पर्याप्त नियंत्रण रहता है। रिज़र्व बैंक के अलावा भी एनबीएफसी बाज़ार के नियमों के आधार पर ही चलती हैं एवं इस प्रकार के जोखिम नहीं उठाती। रिज़र्व बैंक के साथ इन पर कंपनी एक्ट के प्रावधान का भी नियंत्रण होता है। लेकिन कोआपरेटिव सोसायटी इस बात का कुछ भी ख्याल नहीं करती और लगभग सभी मामलों में अपनी जमा का 90 फीसदी से ज्यादा भाग ऋण में दे देती है। और ये ऋण दिया किसे जाता है? 24 से 27 फीसदी ब्याज पर यह कर्ज उन्ही कंपनियों को दिया जाता है जो सोसायटी के कर्ता-धर्ता लोगों के नियंत्रण में होती हैं।
ऋण देते समय ना तो कोई सिक्योरिटी ली जाती है ओर ना ही उसकी वसूली पर ध्यान दिया जाता है। यह कंपनिया ऋण प्राप्त करते ही उसे बड़ी निर्ममता से खर्च कर देती है और यह खर्च नितांत अपारदर्शी तरीके से होता है क्योंकि ये सोसायटीज मल्टी स्टेट होती है इसकी वजह से किसी राज्य विशेष की सरकार इन पर नियंत्रण नहीं कर पाती, क्योंकि वर्ष 2002 में एक पृथक कानून बना कर मल्टी स्टेट क्रेडिट कोआपरेटिव सोसायटी को राज्यों के नियंत्रण से निकाल कर केंद्र सरकार के नियंत्रण में ला दिया है। क्योंकि ये सोसायटी ना तो बैंकिंग कंपनी है ओर ना बैंकिंग फाइनेंस कंपनी जिन पर रिज़र्व बैंक, रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी एवं बाज़ार के किसी नियामक का कोई नियंत्रण रहता हो, इसी वजह से ये अपना मनमाना काम करती है। वर्तमान कानून इन पर नियंत्रण तो नहीं रख पाते लेकिन इन्हें मनमाना काम करने में सहायता ही देते है जैसे आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80P इस धारा के अनुसार कोई को कोआपरेटिव सोसायटी यदि अपने सदस्यों को ऋण दे तो उसे ऋण देने पर ब्याज की जो आय होगी वह पूर्ण: रूप से कर मुक्त होगी। यह कानून इस भावना से लाया गया था कि कोआपरेटिव सोसायटी पर आयकर का बोझ ना पड़े। लेकिन इसी कर मुक्ति के प्रावधान के ऐसे गलत उपयोग ढूंढे गए जिनका कोई अंत नहीं। अब चूंकि ये सोसायटी अपनी उस आय पर किसी प्रकार का कर देने के लिए बाध्य नहीं है जिसे ये ब्याज से अर्जित करते है, ये सोसायटी बेखौफ होकर फर्जी मुनाफा दिखाती है। यहां तक कि वे ऋण जो डूब चुके हैं उन पर न प्राप्त होने वाले ब्याज को भी ये सोसायटी अपनी आय में मर्केटाइल लेखा पद्धति के सिद्धIन्तों के अनुसार आय चाहे वास्तविक रूप से प्राप्त हुई हो या न हुई हो लेकिन खातों के आधार पर उसे प्राप्त हुआ दिखाया जाता है।
इस पद्धति का प्रयोग कर ये सोसायटी अपने लिए फर्जी आय और मुनाफा दिखाती है क्योंकि आयकर एक्ट कि धारा 80P के प्रावधानों की वजह से ब्याज आय जितनी चाहे हो कर मुक्त ही रहेगी, वहीँ बैंक जो जनता की डिपॉजिट से ही चलते हैं, अपने करों के बोझ से दबे रहते हैं। इस प्रकार फर्जी मुनाफा दिखा कर ये सोसायटी चलती रहती है। इस फर्जी मुनाफे को ये सोसायटी अपने खाते में रिज़र्व के रूप में ट्रांसफर कर देती है। यह रिज़र्व मल्टी स्टेट कोआपरेटिव एक्ट 2002 में एक बहुत महत्वपूर्ण सुविधा देता है। इस एक्ट के अनुसार कोई भी सोसायटी अपने रिज़र्व की राशि से 10 गुणा तक राशि अपने सदस्यों से जमा के रूप में स्वीकार कर सकती है। उदाहरण के लिए यदि रिज़र्व 300 करोड़ है तो 3000 करोड़ रुपए जमा किए जा सकते है। इस प्रकार फर्जी रिज़र्व खातों में दिखा कर आम जनता से भारी मात्रा में जमा हासिल कर ली जाती है और फिर से दबने वाले कर्जों में लगा दी जाती है या ऐसे खर्चों में लगा दी जाती है जो बनावटी होते है ओर वास्तविक लाभ सोसायटी के कर्ता-धर्ता को देते हैं।
एक बार यह कुचक्र चलना शुरू हो जाए तो किसी भी प्रकार बंद होना मुश्किल है। इन सोसायटी के एजेंट भारी दबाव बना कर रखते है जिसकी वजह से कोई भी निवेशक शायद ही अपनी राशि परिपक्व होने पर बाहर निकालता है। क्योंकि कोई भी निवेशक धन बाहर नहीं निकालता, सोसायटी के लिए नकदी का संकट कभी खड़ा नहीं हो पाता, सिवाय इसके सोसायटी अपने कानूनों में यह प्रावधान कर देती है कि कोई निवेशक यदि अवधि पूर्ण अपनी निवेश राशि निकलेगा तो उसे जुर्माने के रूप में कुल राशि का 50 फीसदी भुगतना करना होगा। इस जुर्माने कि जानकारी निवेश करते समय निवेशक को नहीं दी जाती। उससे बस ऐसे सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवा लिए जाते है जिसकी शर्ते महीन अक्षरों में छपी हो, जैसे ही राशि परिपक्व होती है, शर्तों के मुताबिक यदि आय उसी दिन जाकर उसे नहीं निकालते हैं तो वह फिर से लंबी अवधि के लिए सावधि जमा में बदल दी जाती है और कोई वास्तविक भुगतान निवेशक को प्राप्त नहीं होता है। निवेशक प्राय: इसी खुशफ़हमी में जीवन निकाल देता है कि उसका धन दो गुणा या तीन गुणा हो गया है लेकिन वह कभी वास्तविक धन का उपयोग नहीं कर पाता।
क्या केंद्र सरकार कोई जांच या हस्तक्षेप कर सकती है? वर्तमान कानून जो मल्टी स्टेट कोआपरेटिव एक्ट 2002 है केंद्र सरकार को कोई भी अधिकार यहां तक कि स्पेशल ऑडिट करवाने का भी नहीं देता फिर भी चाहे कितने भी ख़राब ढंग से ये सोसायटी काम करें। इस कानून कि धारा 77(a)(b)(c) के अनुसार केवल उसी सोसायटी की स्पेशल ऑडिट की जा सकती है जिसमें केंद्र या राज्य सरकार की 51 फीसदी या अधिक भागीदारी हो। इस प्रकार ऐसा कोई भी संरक्षण या नियंत्रण वर्तमान क़ानूनी व्यवस्था में नहीं है जिसके जरिये आम जनता द्धारा डिपोजिट कराई गई धन राशि का क्या हुआ, सही उपयोग हुआ या नहीं और कोष का प्रबंधन ठीक से हुआ या नहीं, उस पर कुछ किया जा सकें। वर्तमान चक्र को देखते हुए इसे आप एक महा घोटाला कह सकते हैं जो बढ़ता ही जा रहा है। इस बात कि सिर्फ आशा की जा सकती है कि पाठकगण समझदारी से काम लेंगें ओर अपनी गाढ़ी कमाई ऐसी मल्टीस्टेट क्रेडिट कोआपरेटिव सोसायटी में जमा नहीं कराएंगे।
बचत और निवेश तभी शुरु नहीं करना चाहिए जबकि आपने अपने जीवन के लंबी अवधि के लक्ष्य निर्धारित कर लिए हों जैसे कि घर खरीदना, बच्चों की पढ़ाई इत्यादि। आप अपने लिये छोटे और छोटी से मध्यम अवधि के लक्ष्य भी पाने के लिए शुरुआत कर सकते हैं, और आपको अपने जीवन में यह अपनी आदत में शुमार करना होगा।
आजकल की भागदौड़ की दुनिया में हम लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति बेहद लापरवाह हैं, हम हमेशा ही सोचते हैं कि हम अच्छे स्वास्थ्य के लिए अब घूमना और दौड़ना शुरु करेंगे, और उसके लिए हम नए जूते, कपड़े खरीद भी लाते हैं, जिससे हमें दौड़ने में आसानी रहे, अगले दिन से हम अलार्म लगाकर ऱख लेते हैं कि सुबह 5 बजे उठकर, तैयार होकर दौड़ना शुरु। सुबह जैसे ही अलार्म बजता है, वैसे ही हमारा मन हमसे कहता है कि क्यों शरीर को सुबह सुबह तकलीफ दे रहा है, और थोड़ी देर सो जाओ, थोड़ी देर बाद उठकर तैयार हो जाएंगे, और समय की गणना हमारा मन इस प्रकार करता है कि सब कुछ ऑफिस जाने के पहले हो जाएगा और वह आपको संतुष्ट भी कर देता है,लेकिन ऐसा होता कहां है। फिर सोचते हैं कि चलो आज छोड़ो, कल से देखेंगे, इस प्रकार हम आलस की दुनिया में जीते रहते हैं।
ऐसा ही हमेशा हमारे वित्त प्रबंधन (Money Management) में भी होता है, बहुत सारे लोग अपने आपको वित्तीय प्रबंधन के क्षेत्र में असहाय मानते हैं। अगर आप भी उनमें से एक हैं जिन्हें लगता है कि बचत और निवेश की शुरुआत करना बहुत मुश्किल है, समय निकालना बहुत मुश्किल है, तो आपको यहां हम बता रहे हैं कि कैसे शुरु करें।
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब : यह कहावत बचत और निवेश शुरु करने के लिए बिल्कुल सही है, इसलिये कभी भी देरी न करें। वित्तीय प्रबंधन के लिये, बचत और निवेश के लिए आपको किसी एक दिन का इंतजार नहीं करना होता है, यह तो ऐसा है कि जब जागो तब सवेरा। हरेक दिन बचत और निवेश के लिए अच्छा है। आप यह भी कह सकते हैं कि मेरे बचत खाते में कम से कम इतना पैसा तो होना ही चाहिए या फिर मैं अपनी सैलेरी का इंतजार कर रहा हूँ या फिर नए निवेश के लिए वक्त ठीक नहीं है क्योंकि अभी बाजार काफी बढ़ चुका है इत्यादि।
अगर आप खुद ही देखेंगे तो पाएंगे कि खुद के वित्त प्रबंधन को शुरु करने के लिए आपके पास भागने के एक से एक नायाब तरीके या बहाने मौजूद हैं। लेकिन केवल वित्तीय प्रबंधन ही एकमात्र ऐसा कारण है जो कि आपके सारे दसों बहानों पर भारी पड़ता है। अगर आप अभी से बचत और निवेश शुरु करते हैं तो आपके पास अपनी सेवानिवृत्ति के लिए, घर खरीदने के लिए, अच्छी पढ़ाई के लिए, दुनिया घूमने के लिए या खुद का व्यापार करने के लिए अच्छी खासी रकम होगी। हमेशा लंबी अवधि के लक्ष्य देखें और कोशिश करें कि आप उनके लिए अभी से थोड़ी थोड़ी बचत शुरू करें और जैसे जैसे आपकी आय बढ़ती जाए, अपने बचत और निवेश भी बढ़ाते जाएं। आप अपने पास उपलब्ध रकम को देखें और सोचें कि इस रकम को कहां निवेश किया जा सकता है। अगर आपके बचत खाते में रकम नहीं है तो सोचें और पता लगाएं कि आपके बचत खाते में धन क्यों नहीं है, आपने कहां कहां खर्च किया है, और क्या वे सारे खर्चे बहुत ही ज्यादा आवश्यक थे? क्या आपके खर्च मासिक आमदनी से ज्यादा हैं? अपनी इस समस्या का समाधान आपको अभी के अभी ढूंढना होगा।
सबसे पहले बचत करना शुरु करें : अपने वित्त को सबसे पहले ठीक रास्ते पर लाने के लिए बचत की शुरुआत करें। जब तक आपके पास रकम ही नहीं होगी, आप निवेश कैसे करेंगे? अब सवाल यह है कि बचत कैसे करें? अगर आप सैलेरी पाते हैं तो आपको पता है कि आपकी आय कितनी है।आपके कितनी बचत करनी चाहिए? इसका सही उत्तर देना वाकई बहुत कठिन है, लेकिन फिर भी कम से कम आपको अपनी मासिक आय का 10 फीसदी बचाना चाहिए, भले ही आप अपने कैरियर की शुरुआत कर रहे हों, मतलब कि अपनी कमाई के पहले महीन से ही बचत की शुरुआत करनी चाहिए। जितनी ज्यादा बचत करेंगे उतना ज्यादा अच्छा है, अगर आपकी आय अपने खर्चों से ज्यादा है। अगर आप अपनी मासिक आय में से कुछ भी नहीं बचा पा रहे हैं तो आपको अपने खर्चों को ध्यान से देखना चाहिए, और सोचना चाहिए कि क्या आप अपने खर्चों को कम कर सकते हैं, जिससे आप थोड़ी बहुत बचत तो कर ही सकें। बचत करने का सबसे आसान तरीका है कि जैसे ही आपकी मासिक आय आए आप अपनी आय का 10 फीसदी हिस्सा उसी समय अपने किसी और खाते में जमा कर दें, जो कि बचत के लिए उपयोग करेंगे, आप यह मान लीजिए कि आपको 10 फीसदी कम मासिक आय होना शुरू हो गई है। 10 फीसदी पहले देखने में छोटी रकम लगेगी,लेकिन आप एक वर्ष बाद देखेंगे तो पाएंगे कि आपने अपनी एक महीने की सैलेरी से ज्यादा की बचत कर ली है।
यह एक बेहद बुनियादी नियम है अपनी बचत करने के लिए, फिर निवेश करना शुरु करें। अपनी छोटी अवधि के लक्ष्यों के लिए बचत करना शुरू करें जैसे कि मोबाईल, लेपटॉप या कार खरीदनी हो, तो सबसे पहले इसके लिए आप एक निश्चित रकम जमा करें, इस प्रकार से आपको समझ आने लगेगा कि कैसे आप नियमित बचत कर अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं।
जो बचत की है उसका निवेश करना शुरु करें : एक बार आपको बचत करने की आदत हो जाए तो अगला कदम है निवेश की शुरुआत करना। बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिनको बचत करना आसान लगता है, लेकिन निवेश करना बहुत मुश्किल लगता है। अगर आप अपने वित्तीय जीवन में इस दौर से गुजर रहे हैं तो एकदम बिल्कुल अभी से ही निवेशक के उत्पादों को देखें, सीखें और निवेश करें।
अगर आप पहली बार निवेश कर रहे हैं और सोचते हैं कि आपके लिए बैंक में जमा रकम का प्रबंधन ज्यादा ठीक है तो फिर बैंक में फिक्सड डिपॉजिट या आवर्ती जमा खाता (RD) खोलिए। आजकल तो लगभग सारे बैंक नेटबैंकिंग से एफडी (सावधि जमा) बनाने की सुविधा दे रहे हैं, जिसमें कि आप अपने बचत खाते से सीधे एफडी या आरडी खोल सकते हैं। इस तरह की जमा से आपकी शुरुआत तो होगी ही साथ ही आपको यह सरल भी रहेगा। अगर आप पहली बार निवेश कर रहे हैं और आप म्यूचुअल फंड में निवेश करना चाहते हैं तो आप पहले उसके बारे में जानकारी पा लीजिए। म्यूचुअल फंड में निवेश के दो पहलू होते हैं, निवेश की प्रक्रिया और निवेश। आजकल निवेश की प्रक्रिया आधार कार्ड से केवायसी KYC होने से बहुत ही सरल हो गई है, अगर आपको ऑनलाईन खरीददारी करने में 2 मिनिट लगते हैं तो ऑनलाईन निवेश करने में केवल 5 मिनिट ही लगेंगे।
जब आप निवेश की शुरुआत करते हैं तो आप निवेश के बारे में सीख रहे होते हैं, तो आप अपने निवेश को सरल ही रखें। अगर आप शुरु में 2000 रू ही बचा पा रहे हैं तो, 50 फीसदी रकम आप SIP (Systematic Investment Plan) के जरिए म्यूचुअल फंड में निवेश करें, एक बार आपको SIP MF पर विश्वास हो जाए और उसकी प्रक्रिया पूर्ण तरह से समझ आ जाए तब आप अपना निवेश म्यूचुअल फंड में और बढ़ा सकता है। शुरू करने के लिये आप बैलेन्सड हायब्रिड फंड में निवेश कर सकते हैं। कारण कि इससे आपको अपनी निवेश की जरूरत पता चल जाएगी और साथ ही इस शुरुआत को आप सीखने के तौर पर लें न कि निवेश को तौर पर लें।
अपने लक्ष्य बनाना शुरू करें : यह तो सबको समझ में आता है कि जब आप अपना कैरियर शुरू करते हैं तो पहली बार कमाई होती है और उसी में से बचत करके आप निवेश करने की शुरुआत करते हैं। तब आपको अपने लंबी अवधि के लक्ष्यों के बारे में ज्यादा कुछ न पता होता है और न ही आप उसके बारे में सोचते हैं जो कि सेवानिवृत्ति, घर खरीदना, बच्चों की शिक्षा इत्यादि हो सकते हैं।
इस तरह की परिस्थितियों में आप अपनी बचत और निवेश को अपने पास के जमाधन को बढ़ाने में लगाएं। क्योंकि अभी आपके पास लक्ष्य नहीं हैं, लेकिन आने वाले समय में आपको पास कुछ बड़े लक्ष्य हो सकते हैं, उन परिस्थितियों का सामना करने के लिए और उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आप अपने अंदर बचत और निवेश के लिये अनुशासन ले आएं। इसके लिए आप अपने छोटे खर्चों के लिये बचत की शुरुआत से कर सकते हैं, जैसे कि मोबाइल खरीदना या फिर 6-8 महीने बाद छुट्टी पर जाना।
और इंतजार नहीं करें : आपके बैंक खाते में जो भी रकम है, आप उससे ही शुरुआत कर सकते हैं। बस बचत और निवेश की प्रक्रिया के दौरान अपने आपको इस मनोस्थिति में रखें कि आप किसी मॉल में हैं और आप अपने लिये कपड़े और जूते खरीद रहे हैं तो कौन सा कपड़ा आपके ऊपर जमेगा, उसी प्रकार से कौन सा निवेश आपके लिए लंबी अवधि में बहुत अच्छा लाभ देगा।
हमें हमेशा ही सलाह दी जाती है कि हर चीज को मिल बांटकर उपयोग करना चाहिए और इससे प्यार बढ़ता है, इस तरह की बातें लगभग हर समय आती हैं जब भी हम अपने बच्चों या परिवार के साथ समय बिताते हैं। फिर भले वह भोजन के लिए हो या खिलौने या मिठाई किसी भी बात के लिए हो, लेकिन इन सबमें मिल बांटकर उपयोग करने से वाकई प्यार बढ़ता है। लेकिन जब बात आती है वित्तीय जानकारी की तो जहां तक हो सके इन वित्तीय जानकारी को अपनी पत्नी क्या अपने बच्चों को भी नहीं बताना चाहिए।
कार्ड की जानकारी : क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड का नंबर, एक्सपायरी दिनांक, आपका पूरा नाम जो कार्ड पर है, वैसे तो बहुत सारे लोग आपका नाम जानते ही होंगे,लेकिन फिर भी अपने कार्ड से संबंधित कोई भी जानकारी किसी को भी नहीं दें। जब भी ऑनलाइन ट्रांजैक्शन करते हैं तब यह सारी जानकारियां देनी होती हैं। यही जानकारी पहली सुरक्षा चक्र को भेदने जैसे होती है। अगर किसी के पास यह जानकारी नहीं है तो कोई आपके क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड का उपयोग नहीं कर सकता। अपनी इन सारी जानकारियों को सुरक्षित रखें, इसे किसी को भी न बताएं और न ही पता चलने दें।
सीवीवी : ऑनलाइन ट्रांजैक्शन को पूरा करने के लिए इसकी जरूरत होती है। यह जानकारी भी आपके कार्ड पर छपी होती है और इस जानकारी को आपको किसी को भी नहीं बताना चाहिए।
पासवर्ड : अगर आप नेट बैंकिंग या ऑनलाइन ट्रांजैक्शन के लिए क्रेडिट कार्ड का उपयोग करते हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि ट्रांजैक्शन बिना गोपनीय जानकारी दिए बिना पूरा नहीं किया जा सकता है, जैसे कि कस्टमर आईडेंटिफिकेशन नंबर या यूजर आईडी, कार्ड की जानकारी और उसका पासवर्ड। आपके कार्ड पर जो जानकारी है वह तो शायद फिर भी आपकी जानकारी के बिना भी कोई जान सकता है लेकिन पासवर्ड एक ऐसी सुरक्षा है जो केवल और केवल आपको पता होता है। आप इसके बारे में किसी के कुछ भी नहीं बताएं। ध्यान रखें कि अपने पासवर्ड एक निश्चित समय सीमा के बाद बदलते रहें।
पिन : डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड से एटीएम से पैसे निकालने के लिए आपको पर्सनल आईडेंटिफिकेशन नंबर याने कि पिन की जरूरत होती है, उसके बिना आप एटीएम से पैसे नहीं निकाल सकते हैं। पिन जो है वह बहुत ही गोपनीय होना चाहिए और सुरक्षा के लिहाज से यह बहुत ही जरूरी भी है। पिन नंबर को कभी भी किसी को नहीं बताना चाहिए और जब भी एटीएम या किसी पीओएस मशीन पर स्वाइप कर रहे हों तो अपना पिन नंबर डालते समय यह जरूर सुनिश्चित कर लें कि कोई और आपका पिन नहीं देख रहा है, नहीं तो दूसरे हाथ से कीपैड छुपा लें। ध्यान रखें कि इस गोपनीय पिन को चुराना बहुत ही आसान है, कोई भी आपके पीछे खड़े होकर यह आराम से देख सकता है।
ओटीपी : ओटीपी यानि वन टाइम पासवर्ड यह ट्रांजैक्शन को बहुत ही सुरक्षित बनाने के लिए टू फेक्टर अथेंटिकेशन के लिए शुरू किया गया है, जो कि आपके सारे ऑनलाइन ट्रांजैक्शन सुरक्षित करता है। जब भी आप क्रेडिट कार्ड से ऑनलाइन कोई भी खरीददारी करते हैं या नेट बैंकिंग या वैलेट से करते हैं तो इसके लिए एक ओटीपी आपके पंजीकृत मोबाइल पर भेजा जाता है, और यह ट्रांजैक्शन के पूरा होने की आखिरी सुरक्षा होती है, और यहां तक आप बहुत सारे सुरक्षा चक्रों को पार करके पहुंचते हैं। ध्यान रखें कि अगर आप अपने ओटीपी को किसी को भी बता रहे हैं तो आप सीधे सीधे अपनी पूरी वित्तीय जानकारी कुछ मिनिट या एक ट्रांजैक्शन के लिए किसी को दे रहे हैं और कोई भी इस बात का गलत फायदा उठाकर पूरा खाता साफ कर सकता है। हमेशा ही अगर कोई भी आपसे इन जानकारियों को साझा करने की बात करें तो हमेशा ही उस व्यक्ति को आप शक की नजरों से देखें और यह भी ध्यान रखें कि आपका बैंक या कोई और वित्तीय संस्था कभी भी इस तरह की जानकारी अपने ग्राहक से नहीं मांगती हैं। कई बार इसी बाबत बैंक अपने ग्राहकों को सुरक्षित रहने के मद्देनजर एमएसएस भेजती रहती हैं।
आजकल तकनीकी गलतियों के कारण यह बहुत देखने में आ रहा है कि एटीएम से पैसे नहीं निकले और स्लिप भी बाहर आ गई कि तकनीकी गलती के कारण पैसे नहीं निकले हैं, लेकिन आपके पास एसएमएस आ गया है कि आपके खाते में से पैसे एटीएम से निकल गए हैं। अब सबसे बड़ी समस्या है कि क्या करें और उससे बड़ी समस्या यह है कि अगर आपको पैसों की जरूरत है और आपके पास खाते में उतने ही रूपए थे तो आप कहीं जा भी नहीं सकते। इस तरह के मामलों में तो बस यही है कि आपको अपने दोस्तों या रिश्तेदारों से ही मदद का आसरा है।
अगर यह स्थिति आपके साथ भी है तो आप सबसे पहले कार्ड पर लिखे ग्राहक सेवा केंद्र के फोन नंबर पर फोन करके उनको शिकायत दर्ज करवाएं, वे लोग शिकायत दर्ज करने में टालमटोली करेंगे और यह भी कहेंगे कि पैसे 1-2 दिन में अपने आप ही आपके खाते में जमा हो जाएंग, इसलिए शिकायत दर्ज नहीं करेंगे। लेकिन आप उन पर दबाब बनायें कि कोई बात नहीं अगर पैसे 1-2 दिन में जमा हो जाएंगे तो हम शिकायत खुद ही फोन करके बंद कर देंगे, लेकिन अभी तो आप शिकायत दर्ज करिए।
आप जानते हैं कि अगर आप जितनी देरी से बैंक को शिकायत दर्ज करवाएंगे उतना ही ज्यादा आप खुद एक समस्या में डालते जायेंगे, क्योंकि अगर आपने पहले 2-3 दिन के अंदर शिकायत दर्ज नहीं करवाई तो बैंक कहेगा कि आपने समय से शिकायत दर्ज नहीं करवाई और उसके बाद शिकायत दर्ज करवाने पर आपकी जिम्मेदारी ज्यादा और बैंक की जिम्मेदारी कम हो जाती है। इसलिये बैंक हमेशा यही चाहेगा कि ग्राहक इस तकनीकी गलती की सजा भुगते।
तकनीकी समस्या बैंक की है तो ग्राहक क्यों सजा भुगते, बैंक ग्राहक से सारे शुल्क लेता है लेकिन तकनीकी सुविधा के नाम पर बहुत ज्यादा बदलाव नहीं हैं, जिससे कि ग्राहक को असुविधा का सामना न करना पड़े। आप हमेशा ध्यान रखें कि जब भी ऐसी समस्या हो तुरंत ही ग्राहक सेवा केंद्र को फोन करके शिकायत नंबर जरूर लें।
अभी तक हममें से कोई भी आधार कार्ड के महत्व को समझ नहीं रहा था लेकिन अब सरकार हर जगह पैन नंबर और आधार कार्ड को जोड़कर सभी जगह पारदर्शिता लाना चाहती है। अभी तक अगर बैंक में नया खाता खुलवाना होता था तो आधार नंबर जरूरी नहीं था,लेकिन अब आधार कार्ड जरूरी कर दिया गया है।
जब आप बैंक में नया खाता खुलवाने जाएंगे तब अब आपको पैन कार्ड के साथ आधार नंबर भी देना जरूरी कर दिया गया है। अगर 50 हजार रूपए से ऊपर का कोई भी वित्तीय लेनदेन बैंक में करते हैं तो पैन के साथ अब आधार नंबर भी देना जरूरी हो गया है। सरकार अब यह सुनिश्चित कर लेना चाहती है कि अगर आपका पैन कार्ड है तो आधार नंबर भी आप ही का है, क्योंकि हर नागरिक का केवल एक ही आधार कार्ड हो सकता है, जबकि पैन कार्ड में ऐसा नहीं है। इससे सरकार अपने पास जनता की सारी सूचना बायोमैट्रिक तरीके से भी चिन्हित कर लेना चाहती है और ज्यादा रकम के वित्तीय लेनदेन पर सारी नजर रखना चाहती है। जो लोग आय कर, सेवा कर, बिक्री कर नहीं दे रहे थे, वे सब इस दायरे में पकड़ में आ जाएंगे।
आपके पुराने बैंक खातों में भी 31 दिसंबर 2017 तक आधार कार्ड नंबर जुड़वाना जरूरी हो गया है, अगर आधार कार्ड नंबर नहीं जुड़ता है तो नियत तिथि के बाद बैंक खाते में लेनदेन नहीं कर पाएंगे। सरकार ने अपने मनी लांड्रिग के नए नियम में पैन कार्ड और आधार कार्ड नंबर को जोड़ना जरूरी कर दिया है। अगर म्यूचुअल फंड, सावधि जमा या बीमा में 50 हजार रूपए से ज्यादा का निवेश या लेनदेन होता है तो आधार कार्ड नंबर और पैन नंबर (अगर पैन नंबर नहीं है तो फॉर्म 60) देना जरूरी है। जिससे हर ट्रांजैक्शन की बायोमेट्रिक पहचान हो पाए। यह नियम तब भी लागू होगा अगर बहुत सारे छोटे रकम के ट्रांजैक्शन होते हैं और 50 हजार की लिमिट पार कर जाते हैं। यह न सोचें कि 50 हजार से कम के कई ट्रांजैक्शन करके कोई बच जाएगा, वह अपने आप ही जुड़ते जाएंगे और जो भी इससे बचने की कोशिश करेगा, एकदम से पकड़ में आ जाएगा।
अगर अभी तक आप अपने कर भरने में ईमानदार नहीं थे, तो बेहतर है कि कर चोरी करने के नए तरीके ढूंढने की जगह ईमानदारी से कर भरें, नहीं तो सरकार ने अब लगभग सभी जगह इस तरह के इंतजाम कर दिए हैं कि कहीं न कहीं से तो इस तरह के काम करने वाले पकड़ में आ ही जाएंगे। अभी तक इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजैक्शन पर नजर रखने के लिए कोई सुविधा नहीं थी, लेकिन अब आधार कार्ड नंबर और पैन कार्ड नंबर ने इसे बहुत आसान कर दिया है।
जब से मियादी जमा (फिक्सड डिपॉजिट) पर ब्याज दर कम हो गई है तब से लोग म्युचुअल फंड और शेयर बाजार के बारे में ज्यादा जानने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ लोग जो केवल ब्याज से ही अपना गुजारा कर रहे हैं वे भी अब म्युचुअल फंड के बारे में समझना चाहते हैं, जिससे कि उन्हें कम ब्याज का नुकसान अपने जीवन यापन के लिए नहीं करना पड़े। अगर अभी तक किसी के पास 20 लाख रूपए हैं और उन्होंने बैंक में जमा कर रखे हैं, तो सीनियर सिटिजन के तहत शायद अच्छा ब्याज भी मिल रहा होगा, शायद नौ प्रतिशत तक।
अब जब बैंकों के ब्याज दर में भारी कमी आ गई है तो सीनियर सिटिजन के लिए अभी भारतीय स्टेट बैंक की ब्याज दर सात प्रतिशत चल रही है। अगर नौ प्रतिशत की दर से ही हम ब्याज की गणना करें तो साल भर के 1,80,000 रूपयए होते हैं जो कि प्रतिमाह 15,000 रूपए होते हैं, जिस पर 10 फीसदी टीडीएस भी कटेगा यानि कि साल भर का टीडीएस ही लगभग 18 हजार रूपए कट जाएगा तो प्रतिमाह 15 हजार की रकम भी कम हो जाएगी जो कि लगभग 13,500 रूपए होती है। अब जब 7 प्रतिशत ब्याज हो जाएगा तो केवल 1,40,000 रूपए सालभर के मिलेंगे और 11,600 रूपए प्रतिमाह एवं टीडीएस कटने के बाद लगभग 10,000 रूपए। तो यहां बैठे बिठाये आपको लगभग 3500 रूपयों का खर्चा कम करना होगा।
फिक्सड डिपॉजिट की एक और बात यह है कि आपको ब्याज तो मिलता रहेगा लेकिन आपका मूलधन यानि कि 20 लाख रूपए उतने ही रहने वाले हैं, जो कि महंगाई दर की वजह से आने वाले समय में बहुत ही कम हो जाएंगे। इसके लिए अब सीनियर सिटिजन को भी अपनी निवेश की रणनीति बदलनी चाहिए। सरकार ने कहा है कि 8 लाख तक 8 प्रतिशत का फायदा सीनियर सिटिजन को देंगे तो आप 8 लाख रूपए तो फिक्सड डिपॉजिट में ही रखिए और बाकी की रकम को म्युचुअल फंड में लगाने के बारे में विचार करिए।
आप अपने बचे हुए 12 लाख रूपयों को किसी अच्छे म्युचुअल फंड में लगाएं, इन रूपयों को म्युचुअल फंड में एक साथ निवेश न करें, हर माह एक लाख रूपए का निवेश करें तो आपको बाजार के उतार चढ़ाव का फायदा मिल जाएगा और इस तरह 12 माह में आपका पूरा पैसा म्युचुअल फंड में निवेशित भी हो जाएगा। ध्यान रखें अगर 12 माह के पहले जब भी आप अपने निवेश में से कुछ रकम निकालेंगे यानि कि कुछ यूनिट बेचकर अपने खर्च के लिये पैसे निकाल रहे हैं तो उस पर हुए लाभ पर शार्ट टर्म कैपिटल गैन टैक्स देय होगा जो कि 15 प्रतिशत है। अगर आप अपने निवेश में से 12 माह के बाद रकम निकालना शुरू करते हैं तो आप लाँग टर्म कैपिटल गैन टैक्स के अंतर्गत आते हैं जो कि आयकर के दायरे में नहीं आता है। क्योंकि 12 माह के बाद निकालने पर होने वाले लाभ पर आयकर में छूट प्राप्त है।
हर माह आपका पैसा अपने आप ही आपके बैंक अकाउंट में आ जाए तो उसके लिए आप SWP यानि कि Systematic Withdrawal Plan का उपयोग करें। जब आप SWP का उपयोग करते हैं तो आयकर की गणना प्रथम निवेश और प्रथम निकास से होती है। इसे FIFO याने कि First In First Out भी कहा जाता है। 12 लाख पर आप लगभग 9 हजार रूपए प्रति माह निकालिये, जिससे आपके मूलधन 12 लाख को भी बढ़ने का मौका मिलेगा, बाजार के रूख पर निर्भर करता है कि हो सकता है कि कुछ समय के बाद आपका यह 12 लाख रूपया बढ़कर 15 लाख रूपया भी हो सकता है। निवेश करने के पहले अपनी जोखिम क्षमता को जरूर परख लें और कोशिश करें कि जितना पैसा आपको अभी तक बैंक से टीडीएस कटने के बाद मिलता था, उतना ही निकालें।
विमुद्रीकरण के पहले से ही सरकार कैशलेस याने कि (नगदी रहित) कैशलेस अर्थव्यवस्था का सपना संजोये हुए थी। सरकार ने कैशलेस होने के बहुत से फायदे पहले भी बताए और विमुद्रीकरण के बाद कैशलेस होने की प्रक्रिया में गति आ गई है। विमुद्रीकरण से काले धन पर अंकुश लगने की पूरी संभावनाएं भी हैं। कैशलेस होने से अर्थव्यवस्था में तेजी तो आएगी लेकिन उस तेजी के लिए भारत को बहुत इंतजार करना है। कैशलेस होने के लिए बहुत सी समस्याएं भी हैं उनसे भी निपटना होगा और हर उस वर्ग को साथ लेकर चलना होगा जो केवल कैश पर ही भरोसा करता है।
भारत की 125 करोड़ की आबादी है जिसमें केवल 3 करोड़ क्रेडिट कार्ड हैं और 70 करोड़ डेबिट कार्ड हैं। कैशलेस को क्रियान्वयन करना ही बहुत बड़ा कार्य है, क्योंकि जारी कार्डों से अधिकतर को तो उपयोग ही नहीं किया जाता है, जितने भी लोगों के पास कार्ड हैं उनमें से बहुत कम ही लोग कार्ड का उपयोग कैशलेस के लिए प्रयोग करते हैं। अधिकतर डेबिट कार्ड का उपयोग केवल एटीएम से कैश निकालने के लिए ही किया जाता है। बहुत से लोग क्रेडिट कार्ड ले लेते हैं, लेकिन उपयोग कैसे करना है, पता नहीं होने से उपयोग नहीं करते हैं।
क्या जनता को तकनीक की जानकारी है : अभी हम भले ही मोबाइल वॉलेटस की बातें कर रहे हों जो कि उपयोग करने में बहुत आसान हैं, लेकिन उसके लिए भी स्मार्टफोन चाहिए। स्मार्टफोन भारत में लगभग 25 करोड़ हैं और जनधन खाते लगभग 22 करोड़ खोले गए हैं। लेकिन इससे ही हमें पता चलता है कि भारत में आर्थिक विभाजन है। भारत सरकार UPI (Unified Payments Interface) को कैशलेस में रामबाण औषधि बता कर प्रचारित कर रही है। लगभग किसी भी GSM फोन से जो आधार कार्ड से जुड़े हुए हैं UPI का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए सबसे पहले भारतीय जनता को नगद के मानसिक अवरोध से निकलना होगा। यह भी देखना होगा कि साधारण से GSM फोन से भी UPI को संचालित किया जा सके, क्योंकि कुछ फोन तो बहुत ही पुराने हैं और कई वर्गों का स्मार्टफोन रखने का बजट नहीं होता। अनपढ़ या थोड़ा बहुत पढ़ी लिखी जनता भी नई कैशलेस तकनीक का उपयोग बिना डर से कर पाएगी ?
ऑनलाइन लेनदेन सुरक्षित हैं : अभी तक के जितने भी मोबाइल वॉलेटस उपलब्ध हैं वे सब क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड या नेटबैंकिंग से ही चार्ज होते हैं, सरल शब्दों में कहें कि आपकी वित्तीय निजी जानकारी किसी के पास जा रही है और आम जनता इस जानकारी को देने में असुरक्षित महसूस करती है। इस ऑनलाइन के युग में सभी जानते हैं कि यह जानकारी कहीं न कहीं किसी न किसी सर्वर पर उपलब्ध होगी और देर सवेर किसी ने अगर हैकिंग कर ली तो फिर उनको लुटने से कोई नहीं बचा सकता है। कैशलेस ही भविष्य है, हर समस्या का समाधान है केवल बड़बोलेपन से काम नहीं चलेगा, इसके लिए हमें सुरक्षित उपाय भी लाने होंगे, जिससे आम जनता के बीच का डर खत्म हो। पिछले सालों में ही देखें तो सरकार के ही कई बैंक खाते हैक हो चुके हैं और कुछ दिनों पहले ही लाखों डेबिट कार्ड की जानकारी चुराये जाने का मामला प्रकाश में आया था और कई लोगों ने ऑनलाइन चोरी की शिकायतें भी दर्ज करवाई थीं।
क्या इसके लिए कोई नियम/कानून है : अगर सुरक्षा विषयों पर और भी कानून लाने की जरूरत है तो पारस्परिक भुगतानों के माध्यमों को जोड़ना उससे सरल होगा। अभी तक के रिजर्व बैंक के नियमों के मुताबिक हम एक मोबाइल वॉलेट से दूसरे मोबाईल वालेट को रकम नहीं भेज सकते हैं उदाहरण के तौर पर PayTm से Freecharge को आप रकम नहीं भेज सकते हैं और उसका उल्टा भी नहीं कर सकते हैं। अगर एक वालेट में हमने रूपया डाल दिया है तो समस्या यह है कि दूसरे किसी और वैलेट से हम उन पैसे का उपयोग नहीं कर सकते हैं एवं हमें वापिस से नया वालेट रिचार्ज करना होगा। रूपए में ही हम लेनदेन करते हैं और भारत में एक रूपया ही कानून द्वारा मान्य मुद्रा भी है। हमारे नियामक को आगे आकर नए तरह के लेन देन के तरीकों पर बात करनी होगी, जिससे भारतीय आम जनता में विश्वास कायम हो और वे कैशलेस समाज का हिस्सा बन सकें। अभी अगर कोई ऑनलाइन फ्रॉड होता है तो उसकी जिम्मेदारी किसकी है यह तय नहीं है। अगर जांच पड़ताल के बाद पता चलता है कि वित्तीय संस्थान की सुरक्षा ही कमजोर है जिसके कारण कोई फ्रॉड हुआ है तो भी अभी वित्तीय संस्थान बच निकलते हैं और आम जनता को ही नुकसान उठाना पड़ता है। वित्तीय संस्थानों के लिए सुरक्षा में चूक पर नियम सख्त बनाने होंगे।
कैसे कैशलेस की सुविधा देने वाले पैसे बनाएंगे : बड़ी दुकानें, हायपर बाजार, बड़े रेस्टोरेंट, होटलों को क्रेडिट/डेबिट कार्ड से कोई समस्या नहीं है, बल्कि वे उस पर होने वाले शुल्क को वहन अपनी आमदनी से आसानी से कर लेते हैं। छोटे उद्यमी जैसे कि दूधवाले, सब्जीवाले, जूते ठीक करने वाले लोग कैसे इन शुल्कों को वहन कर पाएंगे, जहां उनकी आमदनी और लाभ भी कम है। हर कार्ड स्वाइप करने पर शुल्क देय होता है। छोटे उद्यमियों को सबसे पहले तो इलेक्ट्रॉनिक भुगतान के बारे में शिक्षित करना होगा और फिर उनको ये कैशलेस प्रणाली अपनाने के लिए शुल्क भी देने होंगे। लेकिन वे क्यों करें ? भविष्य में उनको फायदा क्या है? अभी तो विमुद्रीकरण के कारण पैदा हुए हालात में लगभग सभी लोग खुले पैसों की तकलीफ से जूझ रहे हैं। अभी कार्ड कंपनियों और मोबाइल वालेटस के द्वारा नगदी की कमी होने से व्यापारियों से थोड़े समय के लिए शुल्क नहीं लिए जा रहे हैं। जब यह नगदी की कमी की समस्या सुलझ जाएगी, तब क्रेडिट / डेबिट कार्ड कंपनियां और गेटवे अपने शुल्क फिर से लेने लगेंगे। फिर सरकार इस शुल्क वाले मुद्दे को कैसे सुलझाएगी, यह देखना भी बहुत जरूरी है।
उपयोग करने की भाषा : लगभग सारी मशीनें और सॉफ्टवेयर एप सभी अंग्रेजी भाषा में ही उपलब्ध थे। विमुद्रीकरण की घोषणा के बाद से ही मोबाइल वालेट कंपनियों को समझ में आया कि स्थानीय क्षेत्रीय भाषाओं का एप पर होना बहुत जरूरी है, तभी क्षेत्रीय व्यापारी वर्ग जो मोबाइल वालेट का उपयोग करना चाह रहे हैं, वे लोग भी जुड़ पाएंगे। सबसे बड़ी मुश्किल तो उन लोगों की है जिनका हाथ क्षेत्रीय भाषाओं और अंग्रेजी दोनों में ही कमजोर है। कमजोर तबका जिनको मोबाइल रखना भी महंगा साधन लगता है, उनको मोबाइल से बैंकिंग सोचना ही कठिन है। उनका गुजारा तो नगद से ही होता है और नगद के बिना उनका जीवन गुजारा बहुत ही मुश्किल है। निरक्षर वर्ग के लिए कैशलेस तो श्राप ही है, उनके लिये कोई भाषा ले आओ, उनको किसी न किसी की सहायता की जरूरत रहेगी ही। वे लोग जब बैंक का खाता तक खुलवाने में डरते हैं, बैंक का फॉर्म भरने के लिए किसी का मुंह ताकना पड़ता है, वे कैसे कैशलेस का उपयोग कर पाएंगे, यह तय करना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है। सरकार को इस तरह की शिक्षा का प्रसार गांव-गांव में विभिन्न माध्यमों से करना होगा।
बुनियादी समस्याएं : कैशलेस कहना सुनना बहुत ही सरल लगता है, परंतु भारतीय जनमानस को धरातल पर बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन बुनियादी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी रणनीति बनाना बहुत जरूरी है, यह केवल सरकार के बस की बात नहीं है, हर उस वर्ग के व्यक्ति को मैदान में उतरकर जिम्मेदारी लेनी होगी जो इन तकनीक के बारे में जानता है। मोबाइल के सिग्नल अभी भी कई जगहों पर उपलब्ध नहीं हैं और अगर हैं भी तो नेटवर्क का होना न होना सब बराबर है। सबसे पहले तो हर गांव को मोबाइल नेटवर्क से जोड़ना होगा और मोबाइल या वाईफाई के जरिये कम से कम 2जी तकनीक को तो पहुंचाना ही होगा, आजकल बहुत से एप 2जी पर भी अच्छे से चल रहे हैं, जिससे आम जनता नेट पर जुड़कर ऑनलाइन बैंकिंग तक पहुंच बना सके।
निरक्षर जनता जो बैंक में आज भी कोई फॉर्म नहीं भर पाते, वे किसी जानकार व्यक्ति से अगर मोबाइल से भुगतान करवा भी लें तो इसकी कोई गारंटी नहीं कि उनके साथ धोखाधड़ी न हो। अगर बैंकिंग मोबाइल से जुड़ी है और मोबाइल गुम हो जाए तो क्या हमारा कानून उस मोबाइल से होने वाले किसी भी बैंकिंग ट्रांजेक्शन को रोकने में सक्षम है। निरक्षर लोगों की बात छोड़ दें, अभी मेरे एक मित्र बता रहे थे कि उनका शेयर ब्रोकर अरबपति है और साल में 100 दिन अलग-अलग देशों में रहते हैं और बीएसई में उनका काफी नाम भी है। लेकिन आज तक वे NEFT, RTGS या किसी भी प्रकार की ऑनलाइन बैंकिंग का उपयोग नहीं करते, आज भी सारा लेनदेन केवल चेक के जरिये ही करते हैं, उनको हैकर्स पर ज्यादा भरोसा है बजाय बैंक की सुरक्षा प्रणाली के, इसलिए वे अपने किसी भी बैंक खाते को आनलाइन लाना ही नहीं चाहते हैं। अगर बैंक की चूक से, बैंक की सुरक्षा प्रणाली को धता बताकर कोई धोखाधड़ी करे तो क्या बैंक उसका हर्जाना ग्राहक को देंगे ? ऐसे तमाम प्रश्न आम जनता के मस्तिष्क में कौंधते रहते हैं। जब अरबपति को ऑनलाइन में भरोसा नहीं तो आम जनता कैसे ऑनलाइन बैंकिंग पर भरोसा करे? सरकार ने या किसी भी नियामक ने वित्तीय संस्थानों को इस प्रकार से निर्देशित भी नहीं किया है। अगर हैकिंग हो जाती है तो हमारी कानून व्यवस्था क्या इस तरह के मामलों को जांच पड़ताल करने में सक्षम हैं ?
आज भी डाकघर में जाकर पैसे निकालना बहुत ही कठिन कार्यों में से एक है, कैसे कर्मचारियों की मानसिकता को बदलेंगे। केवल डाकघर ही नहीं हर उस सरकारी विभाग की बात है जहां लेन देन का कार्य होता है, उनको केवल कंप्यूटर के प्रयोग करने में ही इतनी दिक्कत आती है वो लोग कैसे जल्दी से जल्दी इन नई तकनीकों को अपना पाएंगे। हर विभाग में तकनीक को बहुत जल्दी बदलना संभव नहीं है क्योंकि इन सबमें भारी भरकम लागत होती है।
(मोलतोल ब्यूरो; +91-75974 64665)
बड़े नोटों के बंद होने से बहुत से लोगों को खुले पैसों की दिक्कत हो गई है और अब अधिकतर लोग क्रेडिट कार्ड का उपयोग अपनी खरीददारी में कर रहे हैं। बहुत से लोगों ने क्रेडिट कार्ड ले जरूर रखे थे लेकिन उसका उपयोग नहीं कर रहे थे। क्रेडिट कार्ड जब हम अपनी खरीददारी में उपयोग करते हैं तो दर्द कम होता है, क्योंकि उस समय आप जाने वाले नगद को देख नहीं पाते हैं। यही दर्द का मनोविज्ञान तब काम करता है जब आप किसी को अपने बटुए से नगद निकाल कर दे रहे होते हैं। क्रेडिट कार्ड का उपयोग करना जब भी शुरू करें और जब क्रेडिट कार्ड उपयोग करें तब कुछ बातों को अपने दिमाग में हमेशा के लिए ध्यान में रखें।
क्रेडिट कार्ड उपयोग में ध्यान ऱखने की बातें :
क्रेडिट कार्ड के क्रेडिट याने कि उधार को अगले महीने भर देंगे : जब आप क्रेडिट कार्ड से खरीददारी करते हैं तो उसका एक निश्चित मासिक बिलिंग चक्र होता है और उसमें आपको भरने के लिए दो तरह की राशि लिखी होती हैं। पहली होती है पूरी रकम जो कि बकाया है और दूसरी उस रकम का 5 प्रतिशत जो कि कम से कम आपको भरना होता है। 5 प्रतिशत भरने से आपको बाकी की बकाया राशि को भरने की एक महीने की मोहलत मिल जाती है, जिसके लिए बैंक आपसे 3-4 प्रतिशत मासिक तक का ब्याज वसूलते हैं। कोशिश करें कि आप अपनी पूरी बकाया रकम हर महीने की बिल की आखिरी तारीख से पहले ही भर दें। अगर आप हर महीने क्रेडिट कार्ड पर खरीदी करते जाएंगे और केवल 5 प्रतिशत बिल का भरते जाएंगे तो आप अपनी बकाया रकम बढ़ाते जाएंगे। इस तरह से आप पूरी तरह से क्रेडिट कार्ड कंपनी के जाल में फंस चुके होंगे।
ब्याज मुक्त समय आपके बकाया पर हर बार नहीं होता है : साधारणतया: लोग यही जानते हैं कि क्रेडिट कार्ड पर खरीदी करो तो हर खरीदी पर ब्याज मुक्त समय मिलता है, याने कि कम से कम 18 दिन और अधिकतम 50 दिन। लेकिन ब्याज मुक्त तभी होता है जबकि आपने अपने पिछले पूरे बिल को भर दिया हो और आपकी बकाया रकम शून्य हो। अगर आपने पिछले महीने का बकाया नहीं भरा है याने कि केवल 5 प्रतिशत भरा है तो आपको अगले महीने की करी गई खरीदी पर ब्याज मुक्त समय नहीं मिलेगा, बिल के शुरूआती दिन से ही उस रकम पर भी आपको 3-4 प्रतिशत की दर से ब्याज लगना शुरू हो जाएगा।
क्रेडिट कार्ड से क्रेडिट कम लें : ऐसे बहुत से लोग हैं जो एक से ज्यादा क्रेडिट कार्ड रखते हैं, और कुछ लोग तो बहुत ही सारे क्रेडिट कार्ड रखते हैं। हमेशा कोशिश करें कि आप अपने क्रेडिट कार्ड की क्रेडिट लिमिट का 50 प्रतिशत से ज्यादा उपयोग न करें। आप इसके लिए मोबाइल या ईमेल पर अलर्ट करने के लिये सैट कर सकते हैं। जिससे कि आपको अपनी क्रेडिट कार्ड की लिमिट का पता चलता रहे, वैसे तो आजकल अधिकतर क्रेडिट कार्ड में जब भी आप खरीददारी करते हैं तो खरीददारी की रकम के साथ ही उपलब्ध क्रेडिट लिमिट भी आ जाती है। ध्यान रखें कि क्रेडिट कार्ड अपने सारे ट्रांजेक्शन और हिस्ट्री सिबिल से शेयर करते हैं। क्रेडिट कार्ड पर अधिक बकाया या क्रेडिट लिमिट अधिक उपयोग करने की दशा में आपके क्रेडिट स्कोर पर बुरा असर पड़ता है और आगे ऋण लेने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इस स्थिति को क्रेडिट हंगर कहा जाता है।
क्रेडिट कार्ड से नगद निकालने से बचें : क्रेडिट कार्ड से नगद निकालने की स्थिति में निकाली गई रकम पर किसी भी प्रकार का ब्याज मुक्त समय नहीं होता है, निकाले गए दिन से ही उस रकम पर ब्याज लगना शुरू हो जाता है और साथ ही नगद निकासी पर एक बार का शुल्क भी लागू होता है। और ब्याज तब तक चलता रहता है जब तक कि आप उस रकम को वापिस क्रेडिट कार्ड कंपनी को चुका नहीं देते हैं।
रिवार्ड पाइंट की असलियत : ज्यादा रिवार्ड पाइंट इकठ्ठे करने के लिए लोग अधिक खर्च करने लगते हैं और यह भी क्रेडिट कार्ड व्यापार में कार्ड बेचने का एक मुख्य हथियार है। जितने रूपयों की आप खरीदी करेंगे उसके बदले में क्रेडिट कार्ड कंपनी आपको कुछ रिवार्ड पाइंट देती है। जैसे कि हर 100 रूपयों पर एक पाइंट और अधिक खर्च करने पर उसके अनुपात में ही या फिर दो या चार पाइंट तक मिल सकते हैं। एक रिवार्ड पाइंट की कीमत साधारणतया 25 पैसे से 50 पैसे के बीच होती है। कुछ कार्ड कंपनियाँ अपने रिवार्ड पाइंट से पेट्रोल खरीदने का भी मौका देती हैं नहीं तो कुछ उपहार ले सकते हैं। ज्यादा रिवार्ड पाइंट बनाने के लिये कभी भी क्रेडिट कार्ड पर ज्यादा खरीददारी न करें।
कोशिश करें कि आप अपने क्रेडिट कार्ड खाते को अपने बचत खाते से जोड़ दें जिससे कि अपने आप नियत तिथि पर क्रेडिट कार्ड के बिल का भुगतान हो जाए और आपको किसी भी प्रकार की देर से भुगतान के शुल्क या ब्याज न देना पड़े। वहीं 5 प्रतिशत पूरी बकाया रकम का भुगतान करने का भी ऑप्शन होता है, परंतु कोशिश करें कि पूरी बकाया रकम भर दें।
ईएमआई में बदलें : अगर आपको बकाया राशि को एक ही बार में भरना मुश्किल लग रहा है तो आप क्रेडिट कार्ड कंपनी से कहिये कि बकाया रकम को ईएमआई में बदल दें, जिसका ब्याज पेनल्टी और साधारण क्रेडिट कार्ड के ब्याज से कम ही होता है। ईएमआई में बदलने पर एक प्रतिशत तक प्रोसेसिंग फीस क्रेडिट कार्ड कंपनियां लेती हैं। ब्याज दर 18 से 24 प्रतिशत वार्षिक तक हो सकती है, जो कि 36-48 प्रतिशत साधारण ब्याज से बहुत कम होता है।
बैलेन्स ट्रांसफर : अगर आप एक से ज्यादा क्रेडिट कार्ड उपयोग कर रहे हैं और दूसरे क्रेडिट कार्ड कंपनी वाले कम ब्याज ले रहे हैं तो आप पहले क्रेडिट कार्ड से दूसरे में बैलेन्स ट्रांसफर कर सकते हैं, जिसके लिए कंपनियां कुछ फीस लेती हैं।
आँखें खोलकर खर्च करें : जब भी क्रेडिट कार्ड का स्टेटमेंट आये हमेशा पैनी निगाहों से एक एक खर्च और जमा को देखें, क्योंकि कई बार इसमें तकनीकी त्रुटि भी होती है। बिल में हमेशा आखिरी दिनांक देखें और ध्यान रखें कि अगर उसके बाद आप बकाया रकम जमा करते हैं तो लेट पैमेन्ट फीस और उतने दिन का ब्याज भी लग जाएगा। कोशिश करें कि बिल के आखिरी दिन के तीन दिन पहले ही बिल भर दें। आजकल NEFT से भुगतान करने पर उसी दिन भुगतान हो जाता है।
खर्च करने के तरीके : हमेशा अपने क्रेडिट कार्ड स्टेटमेंट में देखें कि आपने किस तरीके से कहां-कहां खर्च किया है और किन खर्चों को कम किया जा सकता है। अगर बाहर खाने पर और बाहर घूमने फिरने पर ज्यादा खर्च हो रहा है तो आप उन पर लगाम लगाकर अपने घरेलू बजट को काबू में ला सकते हैं और अपनी बचत बढ़ा सकते हैं।
ज्यादा खर्च करना : अगर क्रेडिट कार्ड आपके बटुए में हो तो इसका मतलब कि आपकी जेब में पूरी दुनिया है। कई बार हम लालच में बहुत सी खरीददारी करना चाहते हैं जिसकी अभी जरूरत नहीं है। ऐसी खरीददारी को हमेशा थोड़े दिनों के लिए टाल देना चाहिए, इससे आपको सही खरीददारी करने के निर्णय को लेने में मदद मिलती है।
अंतरराष्ट्रीय उपयोग : क्रेडिट कार्ड को देश के बाहर उपयोग करना कई बार महंगा साबित हो सकता है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय खरीददारी करते समय बहुत से शुल्क भी लगते हैं और मुद्रा विनिमय के 2-3 प्रतिशत एवं कुछ और शुल्क भी लागू होते हैं। अगर आप अपने क्रेडिट कार्ड को नगद निकालने में उपयोग करते हैं तो निकाली गई रकम का 2-3 प्रतिशत शुल्क भी लगता है। ध्यान रखें कि अगर आपके क्रेडिट कार्ड पर बहुत अधिक बकाया हो चुका है तो एकदम से कार्ड पर नई खरीददारी बंद कर दें। सोचें और इस बकाया राशि को जल्दी से जल्दी चुकाने की योजना बनायें। क्रेडिट कार्ड का उपयोग तभी करें जब वाकई जरूरत हो, केवल रिवार्ड पाइंट बनाने के लिए क्रेडिट कार्ड से खरीददारी करना ठीक नहीं।
हम सब गलतियां करते हैं। कभी-कभी हम ऐसी गलतियां भी कर जाते हैं जो हमें नहीं करनी चाहिए। कुछ गलतियां बहुत छोटी होती हैं, जिन्हें अवसर मिलने पर सुधारा जा सकता है। लेकिन कुछ गलतियां हमें काफी महंगी पड़ती हैं और दूसरा अवसर मिलने पर भी इन्हें आसानी से नहीं सुधारा जा सकता। इनवेस्टमेंट भी एक ऐसा क्षेत्र हैं जहां छोटी से छोटी गलती भी बड़ी महंगी साबित हो सकती है। तो क्या आपको पता है कि इनवेस्टमेंट करने से पहले आपको क्या करना चाहिए? और क्या आपको यह भी पता है कि इनवेस्टमेंट करते समय वे कौन-कौन सी गलतियां हैं जिनसे बचना चाहिए? अगर आपको नहीं पता तो कोई बात नहीं। हम यहां आपको ऐसी आम सात गलतियों से परिचित करा रहे हैं जिन्हें इनवेस्टमेंट करते समय आपको हर कीमत पर करने से बचना चाहिए।
ट्रेडिंग और इनवेस्टमेंट के बीच असमंजस : सबसे पहले आपको ट्रेडिंग और इनवेस्टमेंट के बीच के फर्क को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। ट्रेडिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके लिए आपको बहुत ज्यादा प्लानिंग और रिसर्च की जरूरत नहीं होती। इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि ट्रेडिंग के लिए आपको केवल स्टॉक और म्युचुअल फंड खरीदना और बेचना होता है। सही मायने में ट्रेडिंग आपको लंबी अवधि में पूंजी बनाने में मदद नहीं करता लेकिन इससे आपके ब्रोकर को जरूर अच्छा खासा लाभ हो जाता है। इसलिए इनवेस्टमेंट करने से पहले यहां ट्रेडिंग और इनवेस्टमेंट के बीच के अंतर को भलीभांति समझना बहुत जरूरी है।
इनवेस्टमेंट के लिए आपको बहुत रिसर्च और सोची समझी प्लानिंग की जरूरत होती है। आपकी इनवेस्टमेंट पूंजी, आपका लक्ष्य, रिस्क उठाने की क्षमता, वर्तमान मार्केट कंडीशन और भविष्य के मार्केट के लिए कुछ बेसिक अध्ययन के साथ ही अन्य कई मुद्दों की समझ आपको बेहतर इनवेस्टमेंट रणनीति बनाने में काफी मददगार साबित होगी।
रूढिवादिता : अधिकांश लोग बहुत ही रूढ़ीवादी रुख अपनाते हैं और वे पारंपरिक प्रॉडक्ट जैसे बैंक डिपॉजिट, पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीएफ) आदि में निवेश करते हैं। उनका तर्क होता है कि पारंपरिक प्रॉडक्ट गारंटीड रिटर्न देते हैं। हालांकि, पारंपरिक प्रॉडक्ट से मिलने वाला रिटर्न स्टॉक, म्युचुअल फंड और इक्विटी से मिलने वाले रिटर्न की तुलना में काफी कम होता है। एक अच्छा इनवेस्टमेंट उसे कहते हैं जो गारंटीड रिटर्न के साथ ही वास्तविक रिटर्न भी दे। वास्तविक रिटर्न वह रिटर्न है जो मुद्रास्फीति के बाद मिले। और यह हमेशा तभी सही होगा जब हम वास्तविक रिटर्न को विशेषज्ञ की मदद से वर्तमान हालातों को विशेषकर मुद्रास्फीति को ध्यान में रखकर गणना करें।
आक्रामकता : बहुत अधिक रूढ़ीवादिता न अपनाने का मतलब यहां यह बिल्कुल नहीं है कि आप मार्केट में एकदम आक्रामक रुख अपना लें। एक निवेशक यदि बिना सोचे समझे और बिना किसी जानकारी के किसी कंपनी के स्टॉक में आक्रामक तरीके से इनवेस्ट करता है तो उसे अपनी पूंजी गंवानी भी पड़ सकती है। ऐसे में बीच का रास्ता अपनाना बहुत फायदेमंद होता है। इसलिए हमेशा मार्केट कंडीशन के हिसाब से अपने इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो में बदलाव करते रहना चाहिए।
बेकार स्टॉक का चयन : बेकार स्टॉक को खरीदना, कुछ निवेशकों द्वारा की जाने वाली यह एक बड़ी सामान्य सी गलती है। बेकार स्टॉक का मतलब केवल नॉन परफॉर्मिंग स्टॉक से नहीं है, इसका मतलब ऐसे कंपनियों के स्टॉक से भी है जिनके बारे में कभी कुछ नहीं सुना गया हो। ऐसे किसी कंपनी के स्टॉक खरीदने से बचना चाहिए जिनके बारे में हमनें कभी कुछ सुना या पढ़ा न हो, भले ही यह कंपनियां बेहतर प्रदर्शन क्यों न कर रही हों। ऐसी कंपनियों के स्टॉक छोटी अवधि में तो अच्छा रिटर्न देते हैं लेकिन लंबी अवधि में इनका कोई भरोसा नहीं रहता और कभी भी इनके स्टॉक बेकार हो जाते हैं। यहां ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं कि कई कंपनियां और उनके स्टॉक एक समय पश्चात बिल्कुल बेकार हो गए।
इसलिए यह जरूरी है कि हमेशा परफॉर्मिंग स्टॉक में ही निवेश किया जाए। और साथ ही एक अच्छे फंड मैनेजर की मदद ली जाए। उदाहरण के तौर पर एक छोटे सी रकम के साथ आप सिस्टेमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान (सिप) के जरिए रेगूलर इनवेस्ट कर सकते हैं और लंबी अवधि में इसके जरिए आप एक अच्छी खासी पूंजी बना सकते हैं।
अपने निवेश की सुध न रखना : लंबी अवधि के दौरान अच्छे रिटर्न के लिए समय-समय पर अपने इनवेस्टमेंट की जांच परख करना भी बहुत जरूरी है। मार्केट के व्यवहार, अपनी रिस्क क्षमता और वित्तीय लक्ष्यों के समावेश के साथ एक निश्चित समय अंतराल पर इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो की जांच करते रहना चाहिए। अनुपयुक्त इनवेस्टमेंट जैसे डेट में लंबे समय के लिए बहुत अधिक इनवेस्टमेंट और आने वाले तिमाही नतीजो से पहले इक्विटी में असामान्य इनवेस्टमेंट आपको मुश्किल में डाल सकता है और इससे आपके रिटर्न पर भी विपरीत असर पड़ सकता है।
मार्केट के सही समय की समझ : यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां कई बार विशेषज्ञ भी चूक जाते हैं। शॉर्ट से मीडियम टर्म में मार्केट बहुत अधिक अप्रत्याशित होता है। हालांकि यहां कुछ पैरामीटर हैं जिनकी मदद से मार्केट का अनुमान लगाया जा सकता है। देश के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और व्यापारिक हालातों पर मार्केट निर्भर रहता है। यहां कोई ऐसा नियम नहीं है जिसकी मदद से यह पता चल सके कि किस हालात में मार्केट का क्या रुख रहेगा। यहां आपको यह सुझाव दिया जाता है कि ऐसे हालातों के बारे में ज्यादा पढऩे से बचें। इसके विपरीत आप अपनी निवेश रणनीति पर ज्यादा ध्यान दें जो आपको लंबी अवधि में एक बड़ी पूंजी बनाने में मददगार होगी।
अतिविश्वास : लंबे समय से मार्केट से जुड़े खिलाडिय़ों से अगर पूछा जाए तो वह केवल यही सलाह देंगे कि अल्प अवधि में मिली सफलता से अतिविश्वासी न बनें। अच्छे समय में विश्वासी होना कोई गलत बात नहीं है लेकिन अतिविश्वास में आकर कभी-कभी निवेशक गलत कर बैठता है। यहां यह समझना बहुत जरूरी है कि मार्केट में आपको हाल ही में मिली सफलता के पीछे कई छिपे कारण हो सकते हैं। इसलिए थोड़ी सी सफलता के कारण अतिविश्वास में आकर अपने आप को परफेक्ट मैनेजमेंट ऑफ पोर्टफोलियो न समझे। इससे आप बड़ी परेशानी में पड़ सकते हैं और आपको वित्तीय नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। मार्केट में इनवेस्टमेंट करने से पहले इन सभी सामान्य सी गलतियों को किसी भी कीमत पर करने से बचें, तो आप जरूर सफल निवेशक बन सकेंगे।
Tuesday January 31,2023
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